2050 तक हर साल वायु प्रदूषण से हो सकती है 66 लाख मौतें
दुनियाभर में वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है और वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर हवा कि गुणवत्ता सुधारने के लिए शीघ्र कुछ नहीं किया गया तो वर्ष 2050 तक प्रति वर्ष 66 लाख लोग अकाल मृत्यु के शिकार हो सकते हैं.
2050 तक हर साल वायु प्रदूषण से हो सकती है 66 लाख मौतें (फाइल फोटो) |
‘नेचर’ जरनल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण से दुनियाभर में प्रति वर्ष 33 लाख लोगों की मौत होती है. इन मौतों के ज्यादातर मामले एशियाई देशों में घरेलू कार्यों के लिए इस्तेमाल होने वाले ईंधन के जलने से फैले धुएं के कारण पैदा हुई बीमारियों के कारण होती है.
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है की अगर वायु के स्तर को सुधारने के लिए जल्दी ही जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो अगले 35 वर्षों में इससे मरने वाले लोगों की संख्या दोगुनी तक पहुंच सकती है.
इस शोध का नेतृत्व करने वाले जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के रसायन विज्ञान के प्रोफेसर जोस लेलीवेल्ड ने कहा कि वायु प्रदूषण से मरने वालों की ये संख्या बहुत बड़ी है. कुछ देशों में वायु प्रदूषण लोगों के मौत की सबसे बड़ी वजह है जबकि कुछ देशों में यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है.
वायु प्रदूषण से हृदय रोग, स्ट्रोक या फेफड़े की बीमारी क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) सबसे ज्यादा होती है. जबकि कई लोगों में वायु प्रदूषण के कारण फेफड़े के कैंसर और सन संबंधी गंभीर बीमारियां भी पाई गईं.
उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण को मापना आसान नहीं है क्योंकि हवा की गुणवत्ता की हर क्षेत्र में निगरानी नहीं की जाती और वायु में घुले कणों की विषाक्तता उनके स्रोत पर निर्भर करती है.
अपने अध्ययन के लिए लेलीवेल्ड की टीम ने वैश्विक वायुमंडलीय रसायन विज्ञान मॉडल को जनसंख्या और स्वास्थ्य सांख्यिकी के आंकड़ों के साथ मिलाया और पाया कि भारत और चीन जैसे देशों में खाना बनाने में इस्तेमाल होने वाले ईंधन से फैले धुएं से काफी ज्यादा मौत होती हैं.
अमेरिका जैसे देश में यातायात से होने वाले प्रदूषण और यूरोप, रूस और पूर्वी एशिया में कृषि कार्यों से निकलने वाले कणों के कारण लोगों की मौत होती है. इन कणों के फेफड़ों में जाने से बीमारी और विकलांगता का खतरा भी बना रहता है.
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