हर छह सेकेंड में स्ट्रोक से होती है एक की मौत

Last Updated 03 Aug 2015 01:13:36 PM IST

वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डा. अशोक कुमार गुप्ता ने कहा कि स्ट्रोक (पक्षाधात) बीमारी महामारी का रूप ले लिया है.


फाईल फोटो

जीवनशैली में परिवर्तन, रक्तचाप पर नियंत्रण एवं अच्छे खान-पान और व्यायाम पर आधारित जीवनर्चया होने से इस पर रोक लगाई जा सकती है.

डा. गुप्ता ने दरभंगा मेडिकल कॉलेज के मेडिकल एजुकेशन यूनिट के तत्वावधान में शुक्रवार शाम ‘स्ट्रोक (पक्षाधात)- आधुनिक उपचार एवं बचाव’ विषय पर आयेजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि मस्तिष्क के किसी भी हिस्से में अचानक खून के संचार में रुकावट और धमनियों से रक्तस्रव होना ही स्ट्रोक (पक्षाघात) कहलाता है.

दुनियाभर में मौत का यह तीसरा प्रमुख कारण है. इस समय हर छह सेकेंड में एक व्यक्ति की मौत स्ट्रोक के कारण हो रही है और विश्व में 65 लाख लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं जिसमें 50 प्रतिशित पीड़ित शारीरिक रूप से अक्षम बन गए हैं.

हृदय रोग विशेषज्ञ ने कहा कि ऐसे व्यक्ति जिसके चेहरे में टेढ़ापन हो, एक तरफ के हाथ या पैर के शक्तिविहिन हो जाने या आवाज में लड़खड़ाहट महसूस होने के तीन घंटे के अंदर उसकी चिकित्सा शुरू हो जाए तो उसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है.

उन्होंने चिकित्सकों से स्ट्रोक के मरीजों के लक्षण की पहचान एवं इलाज में सावधानी बरतने की सलाह दी. डा. गुप्ता ने स्ट्रोक से बचने के लिए आम लोगों से तम्बाकू, अल्कोहल, तले खाद्य पदार्थ से परहेज करने के साथ ही नियमित व्यायाम करने, भोजन में नमक की मात्रा कम लेने एवं मांसाहार का कम प्रयोग करने के साथ अपने भोजन में ताजे फल एवं साग-सब्जियों का प्रचुर मात्रा में सेवन करने की सलाह दी है.

उन्होंने रोग से पीड़ित मरीजों को दवाओं का नियमित सेवन करने एवं नियमित वर्जिस करने की भी सलाह दी है. कार्यशाला को संबोधित करते हुए न्यूरो सर्जरी के विशेषज्ञ डा. मनीष कुमार धीरज ने कहा कि पक्षाघात के मरीजों के पहचान के तुरंत बाद जरूरी होने पर शल्यक्रिया के माध्यम से धमनियों की मरम्मत किए जाने से भी मरीजों को ठीक किया जाता है.

अब यह शल्यक्रिया लगभग सभी शहरों में उपलब्ध हो गई है. मस्तिषक में जमे रक्त का धब्बा निकालने के बाद मरीजों के स्थिति में तेजी से सुधार होती है.


बिलिंग्टन हॉस्पीटल, लंदन के पूर्व अकुपेशनल थेरेपिस्ट डा मनीष जायसवाल ने कहा कि पक्षाघात के मरीजों के लिए अकुपेशनल थेरेपी एवं फिजियोथेरेपी और स्पीच थेरेपी भी काफी जरूरी है. आज इस क्षेत्र में उल्लेखनीय विस्तार हुए हैं.



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