GSLV मार्क-3 का सफल रहा प्रक्षेपण
भारत के नवीनतम पीढ़ी के अंतरिक्षयान जीएसएलवी मार्क 3 के पहले प्रयोगिक प्रक्षेपण को सफलता पूर्वक कर दिया गया है.
जीएसएलवी मार्क 3 |
चेन्नई के निकट श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इस अभियान में ‘क्रू मॉड्यूल एटमॉसफेयरिक रि-एंट्री एक्सपेरीमेंट’ भी किया गया. इसरो ने बताया, 18 दिसंबर को सुबह नौ बजकर 30 मिनट पर प्रक्षेपण किया गया.
योजना के मुताबिक, श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने के तुरंत बाद इसरो एलवीएम 3 के जटिल वायुमंडलीय उड़ान पहलुओं के उड़ान सत्यापन करेगा और फिर तापीय प्रतिरोध, क्लस्टर फॉरमेशन में पैराशूट के संचालन, एयरो ब्रेकिंग सिस्टम इत्यादि के साथ क्रू मॉड्यूल के पृथ्वी के परिमंडल में फिर से प्रवेश करने की क्षमता का भी परीक्षण करेगा.
समुद्र से 126.16 किलोमीटर की ऊंचाई से उड़ान के बाद क्रू मॉड्यूल रॉकेट से करीब 325.52 सेकंड में अलग होगा. विशेष तरह से निर्मित पैराशूट मॉड्यूल के अंडमान निकोबार द्वीप में इंदिरा गांधी प्वाइंट से कोई सौ किलोमीटर की दूरी पर बंगाल की खाड़ी में ‘आसानी से गिरने’ में मदद करेंगे जिसे बाद में तटरक्षक द्वारा निकाल लिया जाएगा.
अधिकारी ने बताया, ‘श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने और बंगाल की खाड़ी में गिरने की इस पूरी प्रक्रिया में करीब 20 से 30 मिनट का समय लगेगा.’
इसरो ने बताया कि रॉकेट पर 140 करोड़ रुपए का खर्च और क्रू मॉड्यूल पर 15 करोड़ रुपए का खर्च आया.
630 टन वजन के जीएसएलवी-एमके 3 3.65 टन वजनी क्रू मॉड्यूल को लेकर जाएगा क्योंकि राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी अंतरिक्ष यात्रियों को आखिरकार अंतरिक्ष में भेजने की अपनी योजना के लिए खुद को समर्थ बना रहा है.
भारत सरकार ने अभी अंतरिक्ष अभियान में मानव भेजने की स्वीकृति नहीं दी है.
42.4 मीटर लंबे जीएसएलवी मार्क-3 के अभियान के पूर्ण होने से इसरो को भारी उपग्रहों को उनकी कक्षा में पहुंचाने में मदद मिलेगी.
जीएसएलवी मार्क-3 की परिकल्पना और उसकी डिजाइन इसरो को इनसैट-4 श्रेणी के 4,500 से 5,000 किलोग्राम वजनी भारी संचार उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की दिशा में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाएगा. इससे अरबों डॉलर के वाणिज्यिक प्रक्षेपण बाजार में भारत की क्षमता में इजाफा होगा.
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