भारतीय मंगलयान 24 सितंबर को मंगल की कक्षा में करेगा प्रवेश
मंगलयान 24 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा और इसके साथ ही भारत भी इस विशिष्ट सूची में शामिल हो जाएगा.
मंगलयान इतिहास रचने के करीब (फाइल फोटो) |
सदियों से इंसान के लिए कौतूहल का विषय रहे मंगल ग्रह पर तिरंगा फहराने जा रहे मंगलयान के लाल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करते ही भारत इस तरह के अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाने वाला एशिया का पहला और दुनिया का चौथा देश बन जाएगा.
अब तक अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ ही मंगल पर सफलतापूर्वक मिशन भेजने में कामयाब रहे हैं. मंगल पर इससे पहले कुल 22 आर्बिटर मिशन भेजे गए जिनमें से केवल नौ ही सफल रहे हैं.
मंगलयान 24 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा और इसके साथ ही भारत भी इस विशिष्ट सूची में शामिल हो जाएगा. इस यान को पिछले साल पांच नवम्बर को पीएसएलवी सी-25 के जरिए प्रक्षेपित किया गया था और यह अब तक अपने मिशन की 90 प्रतिशत से अधिक दूरी तक की दूरी पार कर चुका है.
वैसे पृथ्वी के पडोसी ग्रह मंगल पर आर्बिटर भेजने की शुरूआत सोवियत संघ ने शीतयुद्ध के दौर में की थी. उसने 27 मार्च 1969 को (मार्स-2एम) नाम से एक मिशन मंगल के लिए भेजने की कोशिश की लेकिन इसका प्रक्षेपण नाकाम रहा. एक महीने बाद ही सोवियत संघ के एक और मिशन का भी यही हश्र हुआ.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने मई 1971 में (मरीनर-8) नाम से मंगल पर अपने अभियान की शुरूआत की लेकिन उसका मिशन भी प्रक्षेपण में नाकाम रहा. उसी महीने सोवियत संघ का (कास्मास) मिशन भी प्रक्षेपण में नाकाम रहा.
लाल ग्रह की कक्षा में पहली बार यान को स्थापित करने की उपलब्धि अमेरिका के नाम है. उसने 30 मई 1971 को (मरीनर-9) नाम से मिशन लांच किया जो 30 नवंबर 1971 को मंगल की कक्षा में प्रवेश करने में सफल रहा. सोवियत संघ ने उसी साल (मार्स-2) और (मार्स-3) नाम से मंगल पर दो मिशन भेजे जो कामयाब रहे.
1973 में सोवियत संघ ने मार्स-चार और मार्स-पांच नाम से दो मिशन मंगल पर भेजे जो नाकाम रहे. मार्स-चार मंगल की कक्षा में प्रवेश नहीं कर पाया जबकि मार्स-पांच आंशिक रूप से सफल रहा. यह यान मंगल की कक्षा में पहुंचा और उसने कुछ आंकडे भी भेजे लेकिन यह नौ दिन बाद नाकाम हो गया.
अमेरिका ने फिर 1975 में वाइकिंग-1 और वाइकिंग-2 नाम से दो मिशन मंगल पर भेजे जो सफल रहे लेकिन सोवियत संघ के 1988 में भेजे गए. फोबोस-1 और फोबोस-2 मिशन नाकाम रहे. फोबोस-1 से रास्ते में संपर्क टूट गया था जबकि फोबोस-2 आंशिक रूप से सफल रहा. इस यान ने मंगल की कक्षा में प्रवेश किया और कुछ आंकडे भी भेजे लेकिन लैंडर उतारने से ऐन पहले इससे संपर्क टूट गया.
नासा ने सितंबर 1992 में मार्स आब्जर्वर मंगल की तरफ भेजा लेकिन लाल ग्रह की कक्षा में पहुंचने से पहले ही इससे संपर्क टूट गया लेकिन नवंबर 1996 में भेजा गया नासा का .मार्स ग्लोबल सर्वेयर मिशन सफल रहा. सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस ने 1996 में मंगल पर अपना पहला मिशन भेजने की कोशिश की लेकिन इसका प्रक्षेपण नाकाम रहा.
जापान मंगल पर अभियान भेजने वाला एशिया का पहला देश था लेकिन उसे इसमें कामयाबी नहीं मिली. उसने 1998 में नोजोमी नाम के मिशन को मंगल की तरफ भेजा लेकिन यह इस ग्रह की कक्षा में प्रवेश नहीं कर पाया.
अमेरिका की मार्स क्लाइमेट आर्बिटर 1998 में दुर्घटनाग्रस्त हो गया लेकिन तीन साल बाद मार्स ओडिसी अपने अभियान में कामयाब रहा और अभी भी अपनी सेवाएं दे रहा है. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने 2003 में मंगल की तरफ अपना पहला अभियान मार्स एक्सप्रेस भेजा जो सफल रहा. अगस्त 2005 में छोडा गया नासा का मार्स रिकनेशां आर्बिटर भी सफल रहा और अभी सेवा में है.
कई क्षेत्रों अपनी सफलता के झंडे गाडने वाले चीन की मंगल की तरफ पहली छलांग नाकाम रही. उसने नवंबर 2011 में यिंगहुओ-1 नाम से मंगल की तरफ अपना पहला मिशन भेजा लेकिन यह पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलने में नाकाम रहा और दुर्घटनाग्रस्त होकर पृथ्वी पर गिरा.
वैसे मंगल पर अब तक कुल 51 मिशन भेजे गए हैं जिनमें से 21 सफल रहे. तीन आंशिक सफल रहे. नौ प्रक्षेपण में नाकाम रहे. नौ रास्ते में खराब रहे जबकि नौ मंगल की कक्षा में घुसने या उतरने में नाकाम रहे. कुल 11 फ्लाईबाई अभियानों में पांच सफल रहे और छह नाकाम.
इसी तरह 15 लैंडर अभियानों में आठ मंगल की सतह पर उतरे जबकि सात इस प्रयास में नाकाम रहे. सात रोवर अभियानों में चार सफल रहे जबकि तीन अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पाए. मंगलयान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए पूरी तैयारी कर ली है.
इसरो के सामने अब सबसे बडी चुनौती मंगलयान के तरल इंजन को दोबारा चालू करना है जो दस महीने से सुषुप्तावस्था में है. यान को मंगल की कक्षा में प्रवेश कराने के लिए उसकी मौजूदा रफ्तार 22 किमी प्रति सेकेंड को घटाकर डेढ किमी प्रति सेकेंड करना जरूरी है जिसके लिए तरल इंजन को चालू किया जाएगा.
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