पृथ्वी पर मंडराता क्षुद्रग्रहों का खतरा
पिछले साल चेल्याबिंस्क में गिरे क्षुद्रग्रह के आकार के दो क्षुद्रग्रह गुरुवार की रात धरती के सामने से गुजरे थे.
क्षुद्रग्रह (फाइल फोटो) |
यह खगोलीय पिंड चन्द्रमा की त्रिज्या यानी लगभग 3 लाख 40 हज़ार किलोमीटर की दूरी पर गुज़रे. पृथ्वी पर गिरने की स्थिति में इन पिंडों से भारी नुकसान हो सकता था.
वैज्ञानिकों के लिये खगोलीय पिंडों की धरती से इतनी दूरी की उड़ानों का भी व्यावहारिक उपयोग है. ऐसे मौकों पर वह अपने उपकरणों की जांच कर सकते हैं. यह एकमात्र उप्योग नहीं है- ऐसा बताते हुए मॉस्को राजकीय विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर व्लादिमीर लिपूनव कहते हैं.
चंद्रमा की दूरी तक पहुंचा क्षुद्रग्रह भी पृथ्वी के लिये ख़तरा सिद्ध हो सकता है, यानी भविष्य में वह पृथ्वी से टकरा सकता है. ऐसे खगोलीय पिंड पर निगरानी रख कर हम क्षुद्रग्रह सुरक्षा प्रणाली बनाने की अपनी योजनाओं में आवश्यक संशोधन कर सकते हैं.
मैं ‘मास्टेर’ परियोजना की अध्यक्षता कर रहा हूँ.यह रूस के विभिन्न स्थलों पर तैनात रोबोट चालित टेलेस्कोपों का एक नेटवर्क है. हमनें इन क्षुद्रग्रहों की निगरानी पहले ही शुरू कर दी थी. वह इसलिए, क्योंकि यह क्षुद्रग्रह चेल्याबिंस्क में गिरे क्षुद्रग्रह के समान है. हम यह जानना चाहते थे कि उसे हम देख सकेंगे या नहीं. क्या चेल्याबिंस्क में गिरे क्षुद्रग्रह को चन्द्रमा से अधिक दूरी पर देखा जा सकता था? यह स्पष्ट हुआ है कि देखा जा सकता था. इस क्षुद्रग्रह की हमने तस्वीरें खींची हैं, वह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है और हमने उसके निर्देशांकों की गणना कर ली है.
‘मास्टेर’- यह 40 सेंटीमीटर के आठ टेलेस्कोपों का एक नेटवर्क है. यह टेलेस्कोप आंकड़ों को भेजते हैं और इंटरनेट द्वारा इन पर नियंत्रण रखा जाता है. निर्देश प्राप्त होने पर टेलेस्कोप खुद आकाश के निर्धारित हिस्से की तरफ मुड जाते हैं. यह टेलेस्कोप बुनयादी तौर पर फंडामेंटल रिसर्च यानी मूलभूत अनुसंधान के मकसद से लगाए गए थे. क्षुद्रग्रहों से सुरक्षा के लिये अधिक शक्तिशाली टेलेस्कोप की आवश्यकता है| खतरे की सूचना एक दिन पहले देने का काम ‘मास्टेर’ प्रणाली कर सकती है. लेकिन खतरे की पूर्वसूचना कुछ दिन पहले देना बेहतर होगा. इसके लिये मीटर रेंज में सक्रिय दूरबीनों की आवश्यकता है.
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