उत्तराखंड में एक बारिश भी नहीं झेल पाई करोड़ों के आपदा राहत कार्य
उत्तराखंड में भ्यूंडार घाटी व लामबगड़ में आपदा राहत के कार्य एक बरसात भी नहीं झेल सके.
एक बारिश में बह गए रास्ते राहत कार्य(फाइल फोटो) |
गुणवत्ता के अभाव व योजनाओं के पुनर्निर्माण में भ्रष्टाचार के कारण करोड़ों की राशि आपदा की भेंट चढ़ गई.
जून 2013 की आपदा के बाद गोविंदघाट, लामबगड़ व भ्यूंडार घाटी में यात्रा को पटरी पर लाने के लिए द्रुत गति से कार्य तो किये गए, लेकिन ये कार्य इस वर्ष की एक बरसात भी नहीं झेल सके.
इससे समझा जा सकता है कि कार्य की गुणवत्ता कैसी रही होगी. आपदा के बाद जो कार्य हो रहे थे तब लग रहा था कि जून आपदा जैसी कोई पुन आपदा आ जाए तो उसे झेलने की क्षमता रखने वाले कार्य किये जा रहे हैं.
एक बरसात ने करोड़ों की चपत लगाकर दिखा दिया है कि आपदा राहत के नाम पर जो भी निर्माण कार्य हुए हैं उसमें भारी घोटाला हुआ है.
यही नहीं गोविंदघाट कस्बे को बचाने के लिए बनाई गई सुरक्षा दीवार के हिस्से भी पहली बरसात को नहीं झेल सके.
यही स्थिति भ्यूंडार वैली में बनाए गए पुलों की भी रही. यहां बनाए गए तीनों पुल एक दिन की बारिश के झटके को भी नहीं रोक सके और तीनों पुलों के आपदा की भेंट चढ़ जाने के बाद हेमकुंड साहिब की यात्रा बाधित हुई. किसी तरह सेना व आईटीबीपी को वैकल्पिक पुल तैयार कर फंसे यात्रियों को निकालना पड़ा.
समझा जा सकता है कि आपदा राहत के कायरे के लिए मिली धनराशि का किस तरह तरह दुरुपयोग किया गया. हेमकुंड साहिब मैनेजमेंट ट्रस्ट के एक जिम्मेदार पदाधिकारी ने कहा कि गोविंदघाट में नदी के बेस को देखते हुए सुरक्षा दीवार की फाउंडेशन डाली जानी चाहिए थी. फिर भी ऐसा नहीं किया गया.
उनका कहना है कि ट्रस्ट ने भी गोविंदघाट में आपदा के बाद कई निर्माण कार्य व सुरक्षात्मक कार्य किए हैं. दोनों कार्यों को आज भी मौके पर देखा जा सकता है.
यही स्थिति लामबगड़ स्लाइडिंग जोन की भी है. डेढ़ दशक से बीआरओ इस पर कुछ नहीं कर सका. यही राय बनी कि इस स्थान पर धन की बर्बादी के बजाय एलाइनमेंट बदला जाए या सुरंग निर्माण कराया जाए. बावजूद इसके स्लाइड के नीचे की ओर नदी के किनारे सिंचाई विभाग से क्रेट वाल निर्माण कराने का फैसला ले लिया गया.
यहां निर्मित सुरक्षा दीवार को भी भ्यूंडार वैली की तरह पहली बरसात का खमियाजा भुगतना पड़ा और करीब एक करोड़ 72 लाख की लागत से निर्मित 400 मीटर सुरक्षा दीवार का 150 मीटर हिस्सा पहली बरसात में ही पानी में समा गया.
यह भी उल्लेखनीय है कि लामबगड़ में पूर्व में बीआरओ ने भी स्लाइडिंग जोन के निचले हिस्से से आरसीसी पिलर व अन्य सुरक्षात्मक उपाय किए थे, लेकिन वे भी बरसात में धराशाही होते रहे हैं.
यह सब जानते हुए भी स्लाइड एरिया पर आखिर दो करोड़ बहाने की आवश्यकता क्यों हुई यह समझ से परे है. वर्ष 2013 की आपदा के बाद स्लाइड एरिया से आगे लामबगड़ बाजार से जेपी बैराज तक सबकुछ तबाह हो चुका था.
प्रदेश के आयुक्त से लेकर अन्य अधिकारी भी स्लाइड जोन पार करने के बाद वहां से आगे पैदल पहुंचकर राहत कार्यों का निरीक्षण करते रहे.
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