उत्तराखंड में होली की शुरूआत
कडाके की ठण्ड और ऊपर से होली के नाम पर दम निकलना तो वाजिब ही है.
होली की शुरूआत (फाइल फोटो) |
आप भले ही इसे मजाक माने लेकिन उत्तराखण्ड में होली तो प्रारम्भ हो गई है. डरिये नहीं, उत्तराखण्ड में होली के रंग खेलने का नहीं बल्कि होली गाने के कार्यक्रम शुरू हुआ हैं.
डेढ़ सौ वर्ष पुरानी इस अनूठी परम्परा की शुरूआत उस्ताद अमानत हुसैन ने रामपुर उत्तर प्रदेश से आकर राज्य के अल्मोडा से शुरू आत की थी.
सांस्कृतिक नगर अल्मोडा से पौष मास के प्रथम रविवार होली गायन की परम्परा प्रारम्भ होगी.इसके बाद खडी होली और बैठकी होली के क्रम में बकायदा दो.तीन दर्जन से अधिक महिलाएं व पुरूष वाद्य यंत्रों सहित एक ग्रुप बनाकर विभिन्न स्थानों पर भक्तिभाव से ओत-प्रोत होकर होली गीत गाते हैं.
रविवार के दिन प्रारम्भ हुआ प्रथम चरण व बसन्त पंचमी में दूसरे चरण और शिवरात्रि से होली के टीके वाले दिन तक तीसरा चरण चलता है. पहले चरण में भक्तिपूर्ण गीतों. दूसरे चरण में श्रृंगार प्रधान तथा तीसरे चरण में राधा-कृष्ण की छेडखानी-ठिठोली से युक्त होली गीतों का गायन होता है.
इन गीतों को जंगला काफी, श्याम कल्याण, विहाग, बागेश्री, जै जैवन्ती, पीलू, भैरवी आदि रागों में गाया जाता है. जल कैसे भंरू यमुना गहरी.... झुक आयो शहर से ब्यौपारी..आदि गीत अत्यधिक लोकप्रिय है.
उत्तराखंड के पहाडी ईलाकों में तो यह पुरानी परम्परा हर छोटे बड़े शहर-गांव में मिलेगी लेकिन उत्तराखंड के मैदानी इलाकों के बड़े शहरों में भी यह परम्परा देखने को मिलती है.
पहले चरण की होली शाम के वक्त घर के भीतर पौष की आजकल कडाके की ठंड में सग्गड तापते हुए और गुड के रसा स्वादन के बीच गाई जाती है. खड़ी होली गायन रंगभरी एकादशी से शुरू होता है. इसमें पुरूष और महिलाएं घेरा बनाकर नृत्य करते हुए सार्वजनिक स्थलों अथवा चीर बंधन वाले स्थान पर गाते हैं.
रंग-अबीर और गुलाल के बीच बैठकी होली बैठकर गाई जाने वाली व खडी होली गोल चक्कर बनकार घूम-घूमकर की ताने-आने वाली होली के रंग को और भी रंगीन बना देती है.
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