मायके की सरहदें पार आंसुओं से तर माहौल में नंदा पहुंचीं ससुराल
उत्तराखंड की बहुप्रतीक्षित नंदा राजजात यात्रा के सातवें दिन भगवती नंदा अपने मायके की सरहदें पार करके ससुराल क्षेत्र में प्रवेश कर गई.
नंदा राजजात यात्रा |
इस विलक्षण अवसर पर जब मां नंदा की छंतोली भगोती से होकर क्यूर पहुंची तो माहौल गमगीन हो गया. हजारों नम आंखों ने नंदा को पुल पार कराया तो पूरी घाट में करुण क्रंदन से माहौल गमगीन हो गया. रविवार सुबह नौ बजे से ही केवर का माहौल बस इंतजार का था. लोगों की पथराई आंखें नंदा की छंतोलियों की बेसब्री से इंतजार में थी.
करीब डेढ़ बजे जब छंतोलियां क्यूर पहुंचीं तो लोगों का इंतजार खत्म हुआ. क्यूर के लोगों ने अपनी ध्याण को विदा करने के लिए जिस उत्साह व अपनेपन का परिचय दिया, उसे देख ऐसा लग रहा था मानो समूचा इलाका पूरी श्रद्धा से बेटी को विदा करने उमड़ आया है. लोगों में छंतोलियों को छूने के लिए धक्का-मुक्की होती रही.
जैसे-जैसे नंदा की यह महायात्रा क्यूर पुल के पास पहुंची, लोगों के मन में जगी बिछोह की पीड़ा आंसुओं के रूप में छलक आई. करीब आधे घंटे तक पूरे क्यूर गांव का माहौल ऐसा हो गया था जिसे शब्दों में उकेरना संभव नहीं है.
परम्परा के निर्वहन व बेटी की विदाई का यह समारोह हर जगह साथी विदा होने की पीड़ा का भी गवाह बना. इस पूरी महायात्रा के क्यूर में हाल ही में बने 30 मीटर लंबे पुल को पार करने के इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बनने आज यहां करीब 20 हजार से अधिक नंदा भक्त एकत्रित थे.
होमकुंड तक 280 किमी की यह महान व अद्भुत यात्रा में 30 मीटर का यह पुल पार करना ही इस यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम माना जा सकता है. इस पुल से पहले नंदा का मायका है और पुल पार होते ही ससुराल का इलाका शुरू हो जाता है.
हालांकि अब भी नंदा को अपने घर पहुंचने में दस दिन और लगेंगे. रविवार के बाद के सभी पड़ाव नंदा के ससुराल के पड़ाव हैं और तीन सितम्बर को होमकुंड में यात्रा के विसर्जन के साथ ही नंदा अपने आराध्य शिव के घर पहुंच जाएगी. इसके बाद एक बार फिर से अगले 12 वर्षो का इंतजार अपने भक्तों के लिए छोड़ देगी.
| Tweet |