'3 बार निकाह बोलने से शादी नहीं तो 3 बार तलाक बोलने से विवाह विच्छेद कैसे'
उत्तर प्रदेश सरकार में एकमात्र मुस्लिम मंत्री मोहसिन रजा ने तीन तलाक का समर्थन करने वालों की आलोचना करते हुए आज कहा कि अगर तीन बार निकाह बोलने से शादी नहीं होती तो तीन बार तलाक कहने से विवाह विच्छेद कैसे हो सकता है.
(फाइल फोटो) |
वक्फ एवं हज मंत्री मोहसिन रजा ने कहा, मेरा साधारण सवाल है कि अगर तलाक तलाक तलाक बोलने से विवाह विच्छेद हो जाता है तो निकाह निकाह निकाह बोलने का मतलब होना चाहिए कि विवाह संपन्न हो गया.
रजा का बयान कल लोकसभा द्वारा मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक पारित किये जाने के एक दिन बाद आया है.
उन्होंने कहा कि अगर इसी तर्क से चलें तो नमाज नमाज नमाज बोलने का अर्थ होना चाहिए कि नमाज हो गयी.
रजा ने कहा कि कहीं नहीं लिखा है कि तीन बार तलाक कहने से विवाह विच्छेद हो जाता है. क्या आप सोचते हैं कि तीन बार रोजा रोजा रोजा कहने से मेरा रोजा पूरा हो जाता है.. रोजा एक प्रक्रिया है, जिसे करना होता है. केवल हज हज हज बोलने से हज नहीं हो जाता. इसी तरह तलाक एक प्रक्रिया है.
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की निन्दा करते हुए उन्होंने कहा कि बोर्ड ने चीजों का मजाक बनाकर रख दिया है और वह अपने निहित स्वार्थ को पूरा करना चाहता है.
विपक्षी दलों पर हमला बोलते हुए रजा ने कहा कि विपक्ष को पहले बताना चाहिए कि विधेयक के मसौदे को अंतिम रूप देते समय मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को पक्ष बनाने का आधार क्या है. कई संगठन समाज कल्याण के लिए कार्य कर रहे हैं और आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड उनमें से एक है.
उन्होंने कहा कि जहां तक विपक्षी दलों का सवाल है, वे हमेशा जातीय और सांप्रदायिक भावनाओं का अनुचित फायदा उठाने को तैयार रहते हैं.
रजा ने कहा, कृपया सोचने का प्रयास कीजिए कि भाजपा या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पहल कर इस संबंध में विधेयक का मसौदा क्यों बनाना पड़ा.. ऐसा करने की क्या जरूरत थी?
अगर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड मुस्लिम समुदाय का बहुत बड़ा शुभचिंतक है तो उसे अपने गठन से लेकर अब तक मुसलमानों के लिए किये गये कल्याणकारी कार्यों को बताना चाहिए.
मंत्री ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं पर मुस्लिम पुरूषों ने सदियों से प्रभुत्व जमाया है. अगर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड मुस्लिम समुदाय के लिए इतना चिन्तित है, तो 1985 में शाहबानो मामले में जब उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया तो मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने तत्कालीन राजीव गांधी सरकार पर दबाव डाला था और अंतत: परिणाम पलट दिया गया. इसके परिणामस्वरूप मुस्लिम महिलाएं अस्सी के दशक से ही कठिनाइयों का सामना कर रही हैं और इसके लिए बोर्ड और कांग्रेस जिम्मेदार हैं.
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद राजनीतिक हस्तक्षेप हुआ. इसका मकसद राजनीतिक फायदा लेना था. उस समय पर्सनल ला बोर्ड बड़े आराम से शरीयत को भूल गया था.
लोकसभा द्वारा विधेयक पारित करने के कुछ ही घंटे में पर्सनल ला बोर्ड ने विधेयक के प्रावधानों पर गंभीर आपत्तियां जतायीं. बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना खलील उल रहमान सज्जाद नोमानी ने कहा कि इस मुद्दे पर बोर्ड को विश्वास में लिया जाना चाहिए था. बोर्ड के सदस्य जफरयाब जिलानी ने संकेत किया कि तीन तलाक विधेयक संसद में पारित होने के बाद उसके खिलाफ बोर्ड उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है.
आल इण्डिया वूमेन पर्सनल ला बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर ने कहा कि निकाह एक अनुबंध है, जो भी इसे तोड़े, उसे सजा दी जानी चाहिये.
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने तीन तलाक को लेकर केन्द्र के प्रस्तावित विधेयक को संविधान, शरीयत और महिला अधिकारों के खिलाफ करार देते हुए इसे वापस लेने की मांग की है.
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