मुलायम और अखिलेश के बीच हुई लंबी मुलाकात
सपा में पिता-पुत्र के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई में अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है. तकरीबन डेढ़ घंटे की दोनों के बीच हुई बातचीत में समाधान नहीं निकल पाया है.
मुलायम और अखिलेश (फाइल फोटो) |
पिता मुलायम सिंह यादव जहां अपने को अब भी पार्टी प्रमुख मानते हुए अपने पुत्र तथा यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बात रहे हैं, वहीं अखिलेश पार्टी में नहीं बल्कि पारिवारिक रिश्तों में अपने पिता नेताजी को सर्वोच्च मानते हुए व्यवहार कर रहे हैं. नेताजी अखिलेश से पार्टी और परिवार दोनों को एक साथ रखकर पूरे विवाद का समाधान निकालना चाहते हैं, जबकि अखिलेश पार्टी और परिवार को अब अलग-अलग रखना चाहते हैं.
नेताजी के अलावा सपा में दूसरे-तीसरे से लेकर कई नंबर तक परिवार के लोगों का ही दबदबा है. पार्टी की मजबूती के पीछे जो पारिवारिक एकता और अनुशासन रहा है, अब सत्ता की लड़ाई में वह भी तार-तार हो रहा है. नेताजी को बार-बार यह भरोसा रहता है कि अखिलेश तो बेटा है, उसे मना ही लूंगा. दरअसल, नेताजी का यह भरोसा पार्टी प्रमुख होने के नाते नहीं बल्कि परिवार का मुखिया होने के नाते बना है.
नेताजी यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि उनके पुत्र अखिलेश देश के सबसे बड़े राज्य के लोकप्रिय मुख्यमंत्री हैं, जो अब बड़े हो गए हैं और उनकी लोकप्रियता नेताजी की तुलना में ज्यादा है. सत्ता में वर्चस्व की लड़ाई में शामिल पिता-पुत्र एक-दूसरे पर अब आंख बंद कर विश्वास करने की स्थिति में नहीं हैं. अगर कुछ बातों पर पिता-पुत्र के बीच सहमति बनती भी है तो दोनों तरफ शामिल तरह-तरह के समर्थक अपने नजरिए से दोनों को समझाकर मामले को किसी और मोड़ पर ले जाते हैं.
अखिलेश को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने के साथ-साथ नेताजी ने कहा कि चुनाव के बाद अगर सपा की सरकार बनती है तो अखिलेश यादव ही मुख्यमंत्री होंगे. टिकटों के बंटवारे पर भी मुलायम ने अखिलेश की बात को तरजीह देने को कहा था. मुलायम के इस रुख के बाद परिवार और पार्टी के शुभचिंतकों को लगा कि बात बन गई.
मंगलवार को जब पिता-पुत्र के बीच बैठक हुई तो उसमें कितनी राजनीतिक और कितनी पारिवारिक बात हुई, यह तो नतीजे से ही समझ में आएगा लेकिन नेताजी के बुलावे पर उनसे मिलने गए अखिलेश की करीब डेढ़ घंटे तक अकेले बातचीत हुई. आज की मुलाकात को सुलह-समझौते के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा था, लेकिन बात नहीं बन पाई. पिता से मुलाकात के बाद मीडिया के सवालों से बचते हुए अखिलेश अपने आवास पर चले गए.
दो दिन पहले खुद का पार्टी अध्यक्ष बताने वाले नेताजी ने बेटे अखिलेश से चुनाव आयोग में साइकिल की दावेदारी करने संबंधी प्रतिवेदन वापस लेने और राष्ट्रीय अध्यक्ष पद छोड़ने की बात कही. बात बिल्कुल ही नहीं बनी. सूत्रों का कहना है कि नेताजी पार्टी बचाने और अपने कब्जे में रखने के लिए अध्यक्ष की कुर्सी अपने रखना चाहते हैं. वह बाकी सारी बातें जैसे अमर सिंह को बाहर करने, शिवपाल को अध्यक्ष पद से हटाने, टिकट बंटवारे में अखिलेश की पूरी भूमिका रखने और मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने वाले मुद्दों पर मजबूरी में ही सही, लेकिन तैयार हैं.
बात फिर भी इस लिए नहीं बन पा रही है क्योंकि मुलायम और अखिलेश के बीच लड़ाई पिता-पुत्र के दायरे से बाहर चली गई है. यही वजह है कि अब बदले हुए वक्त में दोनों एक-दूसरे पर भरोसा नहीं कर रहे हैं.
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