रिटायरमेंट तिथि की शाम हुई मौत सेवाकाल में मानी जाएगी : हाईकोर्ट

Last Updated 08 Oct 2015 06:45:41 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकारी सेवक की सेवानिवृत्ति तिथि अन्तिम कार्यदिवस होती है.




पुत्र को मृतक आश्रित कोटे में नौकरी देने का आदेश (फाइल फोटो)

इसके दूसरे दिन से उसे सेवानिवृत्ति माना जायेगा. कर्मचारी का कार्यदिवस 24 घंटे का होता है, ऐसे में यदि कोई कर्मचारी की अन्तिम कार्यदिवस समाप्त होने से पहले मौत हो जाती है तो यह माना जायेगा कि उसकी मृत्यु सेवाकाल में हुई है.

कोर्ट ने सेवानिवृत्ति के दिन शाम सात बजे मृत्यु होने पर सेवाकाल में मृत्यु माना है तथा कर्मचारी के पुत्र की मृतक आश्रित सेवा नियमावली के तहत नियुक्ति के संबंध में तीन माह में निर्णय लेने का निर्देश दिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने राम पाल की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है. याची का कहना था कि उसकी मां विद्युत वितरण उपखण्ड बंदवार में पेट्रोल मैन के पद पर कार्यरत थी जो 30 अप्रैल 2011 को सेवानिवृत्त हो गयी.

इसी दिन शाम सात बजे हृदयाघात के कारण उसकी मौत हो गयी. याची ने आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की. विद्युत विभाग ने यह कहते हुए अर्जी निरस्त कर दी कि याची की मां सेवानिवृत्त हो चुकी थी. उसकी विदाई भी हो गयी.

कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी की सेवा 24 घंटे की होती है इसलिए याची की मां की सेवा रात बारह बजे तक कायम थी. शाम की मौत सेवाकाल में मौत मानी जायेगी.

हाईकोर्ट में फोटो पहचान प्रणाली पर लगी रोक हटी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा संचालित फोटो आइडेंटीफिकेशन प्रणाली पर लगी रोक हटा ली है. कोर्ट के इस आदेश से हाईकोर्ट स्थित आइडेंटीफिकेशन सेंटर द्वारा जारी होने वाली पहचान संख्या एवं पासपोर्ट साइज फोटो पर ही हलफनामे तैयार हो सकेंगे. कोर्ट ने इस कार्य के मद में व्यवस्था खर्च के तौर पर बार एसोसिएशन को 70 रुपये प्रति केस पहचान संख्या लेने को अधिकृत किया है. साथ ही यह छूट दी है कि एक केस में एक व्यक्ति की पहचान संख्या के आधार पर उसी केस में बाद में अन्य हलफनामे बिना 70 रुपये जमा किये कराये जा सकेंगे.

कोर्ट ने सभी शपथ आयुक्तों को अपने रजिस्टर में शपथकर्ता की फोटो व पहचान संख्या के साथ पूरा ब्यौरा दर्ज करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि प्रत्येक केस में जारी पहचान संख्या पूरे विवरण के साथ एक रजिस्टर में सुरक्षित रखा जाए. किन्तु यह व्यवस्था केंद्र, राज्य सरकार एवं सरकारी विभागों के अधिकृत अधिकारियों पर नहीं लागू होगा. उन्हें हलफनामे के लिए पहचान संख्या नहीं लेनी पड़ेगी। पहचान संख्या आम पैरोकारोें के लिए अनिवार्य कर दिया गया है. बगैर पहचान संख्या के हाईकोर्ट में हलफनामे नहीं होंगे.

यह आदेश न्यायमूर्ति वीके शुक्ला तथा न्यायमूर्ति एके मिश्र की खण्डपीठ ने अधिवक्ता उमाशंकर मिश्र की जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बिना मुख्य न्यायाधीश की अनुमति के जमा होने वाला शुल्क नहीं बढ़ाया जायेगा.

इससे पहले बार एसोसिएशन पहचान संख्या के लिए सौ रुपये जमा करा रहा था जिसे याचिका में चुनौती दी गयी थी. कोर्ट ने बिना मुख्य न्यायाधीश की अनुमति लिए बगैर सौ रुपये जमा करने को गलत माना और पण्राली पर रोक लगा दी थी.

कोर्ट के फैसले के बाद हाईकोर्ट में पैरोकारों का आना अनिवार्य हो गया है. पहचान संख्या देते समय पैरोकार का फोटो व बायोमैट्रिक तरीके से अंगूठा निशान परिसर में स्थित सेंटर में लेने के बाद ही हलफनामे किये जाने की व्यवस्था है.



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment