निठारी कांड: कोर्ट ने कोली की फांसी की सजा उम्रकैद में की तब्दील

Last Updated 28 Jan 2015 05:16:45 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निठारी कांड के दोषी सुरेंद्र कोली की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया.


सुरेंद्र कोली (फाइल फोटो)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दया याचिका पर फैसला करने में अत्यधिक देरी के आधार पर बुधवार को 2006 के निठारी कांड के दोषी सुरेंद्र कोली की मौत की सजा घटाकर आजीवन कारावास में तब्दील कर दी.

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल की खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि कोली की दया याचिका पर फैसले में अत्यधिक देरी को देखते हुए उसकी मौत की सजा पर अमल असंवैधानिक होगा.

कोर्ट ने गैर सरकारी संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) की जनहित याचिका पर यह फैसला सुनाया.

इस संगठन ने दलील दी थी कि कोली की दया याचिका के निबटारे में तीन साल और तीन महीने का समय लगा और ऐसी स्थिति में उसकी मौत की सजा पर अमल संविधान के अनुच्छेद 21 में दिये गये जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन होगा.

बाद में कोली ने खुद भी एक याचिका दायर करके इस जनहित याचिका में दिये गये आधार पर ही मौत की सजा को चुनौती दी थी और इस दोनों याचिकाओं को नत्थी कर दिया गया था.

गाजियाबाद की एक विशेष सीबीआई अदालत ने 13 फरवरी 2009 को कोली को मौत की सजा सुनाई थी.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोली की फैसला वापस लेने के अनुरोध वाली अंतिम याचिका खारिज करने के तीन दिन बाद यह जनहित याचिका दायर हुई थी.

निचली अदालत ने दो सितंबर को मौत का वारंट जारी करके कोली की फांसी के लिए 12 सितंबर की तारीख तय की थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोली की अंतिम याचिका पर सुनवाई के निर्णय के मद्देनजर उसक मृत्युदंड के अमल पर रोक लगा दी गयी थी.

अंतिम याचिका खारिज होने से मौत की सजा पर अमल का रास्ता साफ हो गया था लेकिन हाईकोर्ट ने इस मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई का निर्णय करते हुये 31 अक्टूबर को सजा के अमल पर रोक लगा दी थी.

हाईकोर्ट द्वारा 11 सितंबर 2009 को निचली अदालत के आदेश के खिलाफ उसकी अपील खारिज करने और सह आरोपी मोनिंदर सिंह पंढेर को बरी करने के बाद, कोली ने सुप्रीम कोर्ट में दोषसिद्धि को चुनौती दी थी लेकिन 15 फरवरी 2011 को उसकी याचिका खारिज हो गई थी.

इसके बाद कोली ने सात मई 2011 को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के सामने दया याचिका दायर की जिसे 23 महीने बाद दो अप्रैल 2013 को खारिज कर दिया गया.

बाद में कोली की दया याचिका 19 जुलाई 2013 को केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भेजी गई और राष्ट्रपति ने 20 जुलाई 2014 को इसे खारिज कर दिया था.

कोर्ट केन्द्र की इस शुरूआती आपत्ति पर असहमति जताते हुए जनहित याचिका पर सुनवाई पर राजी हुई थी, कि ‘‘दोषी (कोली) ने अपनी दया याचिका खारिज होने को चुनौती देने वाली याचिका दायर नहीं की थी.’’

कोर्ट ने कहा था, ‘‘इस कोर्ट के सामने शुरू हुई कार्यवाही दोषसिद्धि के आदेश के खिलाफ गुणदोष के आधार वाली अपील की प्रकृति वाली नहीं हैं.’’

कोर्ट ने कहा, ‘‘याचिका में वर्तमान मामले में मौत की सजा पर अमल की संवैधानिकता पर इस आधार पर सवाल उठाया गया है कि दया याचिकाएं निबटाने में संवैधानिक प्राधिकारों की तरफ पर देरी हुई है.’’

पुलिस द्वारा राष्ट्रीय राजधानी से सटे नोएडा के एक घर के बाहर नाले में लापता लड़कियों के कंकाल और अन्य सामान बरामद होने के बाद पंढेर और उसके घरेलू सहायक कोली को 29 दिसंबर 2006 को गिरफ्तार किया गया था.

कोली ने कई लड़कियों की कथित रूप से हत्या करके उनके शरीर को टुकड़े टुकड़े करके घर के पीछे और नाले में फेंका था.



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