प्रेमियों के लिए लड़ रहे हैं लव कमांडोज

Last Updated 21 Sep 2014 12:15:39 PM IST

देश में जहां 'लव जिहाद' के नाम पर राजनीति हो रही है वहीं ‘लव कमांडोज’ नाम का संगठन जाति, समुदाय और धर्म से ऊपर उठकर प्रेमी युगलों की शादी करवा रहा है.


लव कमांडोज (फाइल)

आज जब देश में ‘लव जिहाद’ चर्चा में छाया हुआ है, तब ‘लव कमांडोज’ नामक एक संगठन प्यार से नफरत करने वालों का मुकाबला कर रहा है.
     
विवाह की न्यूनतम कानूनी उम्र पूरी कर चुके प्रेमी युगलों को जोड़ने के प्रति प्रतिबद्ध संगठन ‘लव कमांडोज़’ का दावा है कि उन्होंने चार साल की छोटी सी अवधि में 30 हजार से ज्यादा जोड़ों को मिलाया है.
     
लव कमांडोज़ के अध्यक्ष संजय सचदेव कहते हैं कि हम प्रेमियों को मिलाना चाहते हैं, चाहे उनकी जाति, समुदाय, धर्म या निवासस्थल कोई भी हो. एक ऐसा समाज होना चाहिए, जहां प्रेम हर चीज से ऊपर हो.


     
मुख्य रूप से दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में अपना कार्यालय चलाने वाली इस स्वयंसेवी संस्था का दावा है कि वह जोड़ों को सुरक्षा उपलब्ध करवाती है और उन्हें उनके नाराज माता-पिता, परिवारों या पुलिस के रोष से बचाती है. यह संस्था इन जोड़ों को शोषण के खिलाफ लड़ने में मदद करती है और उन्हें शरण देती है ताकि वे स्वतंत्र होकर विवाह कर सकें.
     
सचदेव कहते हैं कि हमारा संगठन जुलाई 2010 में तब शुरू हुआ जब हमने दिल्ली में एक जोड़े को आपस में जोड़ने में मदद की. इससे पहले लड़की के परिवार ने लड़के पर झूठा आरोप लगाकर उसके खिलाफ पुलिस केस दर्ज करवा दिया था.

फंड की कमी के बावजूद प्रेम के लिए इस संगठन की लगातार लड़ाई जारी है. इसका एक शरण स्थल (शेल्टर होम) समूह के अस्थायी कार्यालय के रूप में काम करता है.
     
समूह ज्यादा चर्चा में आने से बचता है क्योंकि उसका मानना है कि अत्यधिक चर्चा के चलते भागकर आए प्रेमी नजरों में आ सकते हैं.
     
सचदेव दावा करते हैं कि जिन लोगों की हम मदद कर रहे हैं, उनमें से कई लोगों के खिलाफ पुलिस मामले दर्ज हैं और ऐसे कई समूह हैं, जो नहीं चाहते कि हम अपनी गतिविधियां जारी रखें.
    
उन्होंने यह भी कहा कि कई बार स्थितियां ऐसी होती हैं, कि मजबूरन हमें अपने शेल्टर होम स्थानांतरित करने पड़ते हैं.
    
इस संगठन के दो हेल्पलाइन नंबर हैं और देश के 12 शहरों में इन नंबरों पर लगातार लोगों के फोन आते रहते हैं. सही कॉल मिलने पर कमांडो तुरंत मदद करते हैं.
     
दिल्ली और एनसीआर में इस समूह के सिर्फ सात ही स्थायी शेल्टर होम हैं लेकिन देश के जिन हिस्सों में जरूरत पड़ती है, वहां समूह अस्थायी शेल्टर होम बनाता है.

 



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