दिल्ली विधानसभा भंग का निर्णय राष्ट्रपति पर

Last Updated 18 Apr 2014 06:42:00 AM IST

उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली विधानसभा भंग करने का निर्णय अब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पर छोड़ दिया है.


दिल्ली विधानसभा भंग का निर्णय राष्ट्रपति पर

उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि दिल्ली में नए सिरे से चुनाव का रास्ता साफ करने की खातिर विधानसभा भंग करने के संबंध में राष्ट्रपति के सामने कोई कानूनी बाधा नहीं है.  .न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि इस संबंध में वह कोई निर्देश नहीं जारी कर रही है और यह राष्ट्रपति पर है कि वह तथ्यों और परिस्थिति के आधार पर फैसला करें.

इस पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ भी थे. पीठ ने कहा, ‘हम स्पष्ट करते हैं कि 16 फरवरी की घोषणा को वापस लेने के लिए राष्ट्रपति पर कोई बाधा या बंधन नहीं है, अगर वह फैसला मौजूदा तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर किया गया है.’

न्यायालय ने कहा, ‘ हम सिर्फ कानूनी स्थिति स्पष्ट कर रहे हैं और क्या करना है तथा किस प्रकार करना है, इसका फैसला राष्ट्रपति द्वारा किया जाना है.’  न्यायालय द्वारा आदेश जारी किए जाने के पहले कांग्रेस, भाजपा, आप और केंद्र के वकीलों ने इस मुद्दे पर सहमति जताई कि घोषणा वापस लिए जाने के संबंध में राष्ट्रपति और उपराज्यपाल की ओर से कोई बाधा नहीं है.

पीठ ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए जिससे विधानसभा में ‘आया राम, गया राम’ को बढ़ावा मिलता हो. इसने कहा कि यह अपनी कार्यवाही संवैधानिक मुद्दों तक सीमित रख रही है और राजनीतिक मुद्दों से परहेज करेगी. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह राष्ट्रपति और उपराज्यपाल तथा उनकी कार्रवाई सही थी या नहीं, इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहा.  न्यायालय ने कहा कि लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार लोगों का वैसा ही अधिकार है जैसा कोई अन्य अधिकार.

न्यायालय आम आदमी पार्टी द्वारा दाखिल एक याचिका की सुनवाई कर रहा था जिसमें अरविन्द केजरीवाल सरकार के पद छोड़ने देने के बाद दिल्ली विधानसभा भंग नहीं किए जाने के केंद्र के फैसले को चुनौती दी गई है.

उपराज्यपाल नजीब जंग ने 70 सदस्यीय विधानसभा को भंग किए जाने का समर्थन नहीं किया था और विधानसभा को निलंबित स्थिति में रखा गया. हालांकि केजरीवाल नीत कैबिनेट ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश की थी.



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