मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और भाजपा अध्यक्ष के बीच की झगड़े की वजह

Last Updated 22 May 2023 02:27:51 PM IST

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पिछले डेढ़ दशक से मुख्यमंत्री बने रहने के बाद जब भाजपा 2018 का विधान सभा चुनाव हारी तो उनकी प्रासंगिकता पर सवाल उठने शुरू हो गए थे। किसी तरह कांग्रेस की सरकार गिर जाने की वजह से वो दुबारा तो मुख्यमंत्री बन गए गए, लेकिन उनकी आगे की राह अब आसान नहीं होने वाली है।


मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और भाजपा अध्यक्ष के बीच की झगड़े की वजह

 मध्यप्रदेश के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा उन्हें चुनौती देते हुए नजर आ रहे हैं। इसी साल के अंत तक वहां विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं, लेकिन उसके पहले ही पार्टी में गुटबंदी की ख़बरें आने लगी हैं। अभी हाल में कर्नाटक विधान सभा चुनाव में गुटबंदी और कुछ पुराने भाजपाइयों का पार्टी छोड़ने के बाद क्या हश्र हुआ पार्टी ने अच्छी तरह देख और समझ लिया है। ऐसे में पार्टी की कोशिश यही होगी कि आने वाले चुनाव से पहले वहां के हालात ठीक कर लिए जाएं ताकि चुनाव में कोई दिक्कत न हो पाए।

शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश के चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं। उनसे पहले अर्जुन सिंह और श्यामाचरण शुक्ल तीन-तीन बार वहां के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। शिवराज सिंह चौहान पहली बार 2005 में मुख्यमंत्री बने थे। तबसे लेकर आज तक मुख्यमंत्री के पद पर बने हुए हैं। हालांकि बीच में यानि 2018 में में वो 15 महीने तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं थे। उसकी वजह थी 2018 में भाजपा की वहां मिली हार। 2018 में कांग्रेस वहां विजयी हुई थी, जिसके बाद कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत की वजह से कांग्रेस की सरकार गिर गई थी, जिसके बाद शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन अब उनकी सियासत खतरे में है।

 उनकी सियासत के लिए सबसे बड़ा खतरा का कारण बने हैं, वहां के प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा। वी डी शर्मा प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ खजुराहो से सांसद भी है। 1986 से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से अपनी राजनीति शुरू करने वाले शर्मा , एबीवीपी में राष्ट्रीय मंत्री ,राष्ट्रीय महामंत्री और संगठन मंत्री के रूप में काम कर चुके हैं।
इस समय वी डी शर्मा और शिवराज सिंह चौहान के बीच दूरियां बढ़ी हुई है। खांटी संघी होने के कारण भाजपा का झुकाव भी वी डी शर्मा की और ज्यादा दिखाई दे रहा है।  सूत्रों के मुताबिक़ वी डी शर्मा के साथ कई दर्जन ऐसे नेता हैं जो शिवराज सिंह से खुश नहीं हैं।

 ऐसे में भाजपा की कोशिश होगी कि उन दोनों नेताओं की आपसी तनाव को ख़तम कर कुछ ऐसा करने की कोशिश की जाय ताकि पूरे प्रदेश में एक ऐसा सन्देश जाए कि वहां सब कुछ ठीक चल रहा है। भाजपा नहीं चाहेगी कि चुनाव से पहले वहां की राज्य इकाई में कुछ अनबन की ख़बरें आएं, क्योंकि भाजपा ने अभी कर्नाटक के चुनाव में उसका हश्र देख लिया है। कर्नाटक विधान सभा चुनाव से पहले भाजपा के कई नेता पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। भाजपा से अलग होने वालों में वहां के एक पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और एक उप मुख्यमंत्री भी थे।

 उन नेताओं के पार्टी छोड़े जाने की बात को पार्टी ने हल्के में ले लिया था। जिसका नतीजा यह रहा कि भाजपा की वहां बुरी तरह हार हुई। ऐसे में भाजपा की कोशिश होगी कि इस बार मध्यप्रदेश में ऐसा कुछ भी न हो जिससे कि उसे चुनावों में नुकसान उठाना पड़े। हालांकि कर्नाटक विधान सभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस इस समय उत्साह से भरी हुई है। उनके नेता भी आगामी चुनाव को जीतने की  कोशिशों में लग चुके हैं। चौथी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी सम्भाल रहे शिवराज सिंह चौहान के साथ सत्ता विरोधी लहर का भी खतरा बना रहेगा। ऐसे में आगामी चुनाव में अगर भाजपा को मध्यप्रदेश में एक बार फिर सरकार बनानी है तो उसे हर हाल में आपसी झगड़े सुलझाने होंगे वर्ना कर्नाटक की तरह मध्यप्रदेश भी उसके हाथों से जाता रहेगा।

 

 

 

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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