धन की कमी के चलते मध्य प्रदेश के जंगलों में चीता लाने की योजना ठंडे बस्ते में

Last Updated 30 Jan 2015 12:53:57 PM IST

धरती पर सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर चीता फिर से देश में लाकर मध्य प्रदेश के जंगलों में छोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना धन की कमी की वजह से ठंडे बस्ते में चली गई है.


(फाइल फोटो)

मध्य प्रदेश के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) नरेन्द्र कुमार ने कहा, ‘‘मध्य प्रदेश के वन विभाग ने दिल्ली में संबंधित विभाग से नामीबिया से चीते ला कर राज्य के नौरादेही वन्यप्राणी अभयारण्य में बसाने की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए 264 करोड़ रूपये दिसंबर 2013 में मांगे थे, लेकिन वहां से अब तक कोई जवाब नहीं मिला है.’’

देश में आखिरी बार देखे गए चीते की छत्तीसगढ़ में 1947 में मौत हो गई थी. 1952 में चीते को विलुप्तप्राय: प्राणी घोषित कर दिया गया.

उन्होंने कहा, ‘‘प्रदेश के सागर जिला स्थित नौरादेही वन्यप्राणी अभयारण्य में चीते लाने के लिए भारतीय वन्यप्राणी संस्थान (डब्लूआईआई) देहरादून ने 16.6 करोड़ रूपये की एक प्रारंभिक कार्ययोजना भी नवंबर 2013 में हमे लागू करने के लिए भेजी थी.’’

वन अधिकारी ने बताया कि डब्लूआईआई के अनुसार हमें 1197 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य में से 700 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल चीतों को बसाने के लिए आरक्षित करना है. इस 700 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से 20 गांवों को विस्थापित करना होगा. इन गांवों में बसे लगभग 2640 परिवारों को मुआवजा देने के लिए 264 करोड़ रूपये की आवश्यकता होगी.

कुमार ने बताया कि अभयारण्य में बसे 20 गांवों को विस्थापित करना होगा, ताकि चीतों के लिए सात बाड़े बनाए जा सकें और 150 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में तार लगाया जा सके. उन्होंने कहा कि धन की अनुपलब्धता की वजह से इस दिशा में अब तक कोई काम नहीं हो पाया है.

वन अधिकारियों ने बताया कि इस परियोजना की खातिर धन उपलब्ध कराने के लिए मध्य प्रदेश सरकार इसलिए तैयार नहीं है, क्योंकि इससे पहले श्योपुर जिला स्थित कुनो-पालपुर वन्यप्राणी अभयारण्य में गुजरात के गिर से एशियाई शेर लाकर बसाने की परियोजना को लेकर केन्द्र सरकार के साथ उसका अनुभव अच्छा नहीं रहा है.

उन्होंने कहा कि कुनो-पालपुर अभयारण्य में गुजरात में गिर के एशियाई शेरों को बसाने के लिए अभयारण्य इलाके में बसे ग्रामीणों को विस्थापित कर दिया गया. इसके लिए केन्द्र ने प्रारंभिक धन मुहैया कराया, लेकिन बाद उसके हाथ खींच लेने के कारण राज्य सरकार को ही उन्हें मुआवजा देना पड़ा. इसके बावजूद अब तक गिर से एशियाई शेर वहां स्थानांतरित नहीं किए जा सके हैं.

राज्य के प्रमुख वन्यप्राणी संरक्षक (पीसीसीएफ) ने कहा कि एशियाई शेरों को गिर से कुनो-पालपुर अभयारण्य में स्थानांतरित करने की परियोजना से सबक लेते हुए राज्य शासन के वन विभाग ने नौरादेही वन्यप्राणी अभयारण्य में विदेश से चीतों को लाकर बसाने की परियोजना के लिए केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) से पहले ही धन की मांग की है और पूरा पैसा मिलने के बाद ही परियोजना शुरू की जाएगी.

वन अधिकारियों ने बताया कि 2010 में यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान चीतों को भारत लाए जाने की परियोजना बनाई गई थी. तब इसके लिए प्रदेश के श्योपुर जिले में 344 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले कुनो-पालपुर वन्यप्राणी अभयारण्य को चुना गया था और इस दिशा में कुछ प्रगति भी हुई. लेकिन 15 अप्रैल 2013 को एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए कि कुनो-पालपुर अभयारण्य में चीता नहीं, बल्कि गुजरात से गिर के एशियाई शेरों का प्रस्तावित स्थानांतरण किया जाए.

उन्होंने कहा कि इसके बाद 23 मई 2013 को चीता कार्यबल की बैठक में विदेश से चीते ला कर नौरादेही वन्यप्राणी अभयारण्य में बसाने का फैसला लिया गया. इस बैठक में विशेषज्ञों ने यह भी सुझाव दिया कि चीतों को नौरादेही में स्थानांतरित करने के लिए वैज्ञानिक अध्ययन करा लिया जाए.

अधिकारियों ने कहा कि इस अध्ययन में पाया गया कि नौरादेही वन्यप्राणी अभयारण्य में चूंकि बहुत घना वनक्षेत्र नहीं है, इसलिए तेज दौड़ने वाले चीतों के लिए यह स्थान उपयुक्त रहेगा.
इस कार्ययोजना के तहत नामीबिया से लगभग बीस चीतों को नौरादेही अभयारण्य मे लाने की योजना थी और नामीबिया चीता संरक्षण फंड (एनसीसीएफ) की टीम ने कुछ साल पहले नौरादेही का दौरा करने के बाद चीते देने पर सहमति भी जाहिर कर दी थी.



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