झारखंड के देव भूमि मलूटी में अनुभवहीन कारीगरों के हाथ मंदिरों का जीर्णोद्धार

Last Updated 12 Apr 2016 06:33:26 PM IST

अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त मंदिरों का गांव देव भूमि मलूटी गांव के पुरातात्विक धरोहर को संरक्षित करने के लिए केंद्र सरकार ने दुमका से ऑनलाइन उद्घाटन किया था.


देव भूमि मलूटी गांव (फाइल फोटो)

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2015 को दुमका आकर इस सौगात को दिया और मलूटी के मंदिरों के संरक्षण के लिए करीब 13 करोड़ रूपये एक एनजीओ को दिया गया है.

मलूटी के मंदिरों के संरक्षण का काम भी शुरू कर दिया गया था लेकिन मलूटी में बिना अनुभव प्राप्त कारीगरों से सैकड़ों सालों का पुराना अमूल्य धरोहर को जिस तरीके से नष्ट कर मंदिरों को नए रूप से मूर्त रूप दिया जा रहा था इससे लग रहा था कि मलूटी के मंदिरों कि कलाकृति नष्ट हो जायेगी. टेराकोटा आर्ट के इस मंदिरों पर हथौड़े की मार से इसका स्वरूप बदला जा रहा था. अब भी ग्रामीणों का विरोध जारी है और उस समय भी चारों और से विरोध हो रहा था.

संरक्षण का कार्य करा रही एजेंसी के चेयरमैन मलूटी पहुंचे थे और दुमका के उपायुक्त भी यहां पहुंचे और एक एक मंदिरों कि बारीकी से जांच की गई, एजेंसी को उपायुक्त ने स्पष्ट निर्देश दिया कि मंदिरों के स्वरूप से किसी प्रकार कि छेड़छाड नहीं करें.

दरअसल दुमका जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर मंदिरों का गांव देव भूमि मलूटी है जिसे ऐतिहासिक और पुरातात्विक भी कहा जाता है. लेकिन अधिकारियों के लापरवाही के कारण जीर्ण -शीर्ण हो गया था और 108 में सिर्फ अब 64 मंदिर ही बचे हुए हैं. इसमें भी बिना अनुभव प्राप्त कारीगरों और सुपरवाइजर की देख रेख में मंदिरों का जीर्णोद्धार किया जा रहा था.

पुराने मंदिरों के शिलालेख और कलाकृती को हथौड़े से तोड़ कर नष्ट किया जा रहा था ऐसे में करीब 400 साल पुराना शिलालेख और मंदिरों के बनवाटो को नष्ट कर नये रूप से मंदिर को बनाये जाने से समूल्य नष्ट हो रहे है.

कई शिलालेख यहां से गायब भी हो गये इससे अब भी ग्रामीणों में नाराजगी है. ग्रामीण कहते हैं कि मंदिर की पुरानी रूप रेखा में बदलाव किसी भी सूरत में बर्दास्त नहीं करेंगे.

देव भूमि मलूटी में करीब 400 साल पूर्व राजा राखड़ चंद्र डामरा युद्ध से हारने के बाद मलूटी आ गए और यहां 108 मंदिर और 108 तालाब का निर्माण कराया.

लेकिन समय के थपेड़ों और उचित देख रेख के आभाव में यह मंदिर और तालाब जमींदोज हो गया. वर्तमान में 62 मंदिर बचे हुए है. हालाँकि झारखण्ड सरकार ने भारत सरकार को इस जर्जर मंदिर की और ध्यान दिलाया.

भारत सरकार ने इस मंदिर को संरक्षित करने के लिये करीब 13 करोड़ रुपया झारखण्ड सरकार के माध्यम से पर्यटन विभाग को दिए है. लेकिन पर्यटन विभाग ने एक ऐसी संस्था को इस गाँव के जीर्णोद्धार का काम दे दिया जिसके पास कोई अनुभव भी है या नहीं कहना मुश्किल है.

वही झारखण्ड विधानसभा के विरोधी दल के मुख्य सचेतक और शिकारीपाड़ा के स्थानीय विधायक नलिन सोरेन ने चल रहे कार्यों पर चिंता व्यक्त करते हुए इस मामले को झारखण्ड के विधान सभा सत्र में मामला को उठाया और इसे तत्काल रोककर इसकी मौलिकता बचाने की आवाज उठाई है. कहा कि करीब 400 साल पुराणी यह ऐतिहासिक धरोहर खतरा है.


देव भूमि और मंदिरों का ऐतिहासिक गांव मलूटी में मंदिरों के संरक्षण के नाम पर धरोहरों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है.

मंदिर के नाम पर सरकारी राशि लूटी जा रही है.जरुरत इस बात कि है कि इसकी लगातार मोनिटरिंग की जाय और स्पेशल टीम यहां कि देख रेख करें अन्यथा ये एन जी ओ यूं ही जैसे तैसे कम कराकर चली जायेगी क्योंकि इससे पहले इन लोगों ने कभी मलूटी देखा ही नहीं होगा.



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