मजदूरी कर की इंजीनियरिंग की पढ़ाई, मलेशिया में मिली नौकरी

Last Updated 14 Sep 2017 06:54:26 PM IST

सच है कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती. समर्पण, मेहनत और लगन हो तो किसी भी मंजिल को हासिल किया जा सकता है.




समय विशेष

पूर्णियां के दिलीप सहनी इसी की एक मिसाल है. उसने दैनिक मजदूरी करते हुये बीटेक की डिग्री हासिल की और फिर उसका मलेशिया के लिए कैम्पस सेलेक्शन भी हो गया. मलेशिया जाने के लिए उसे पैसों की आवश्यकता है, जिसे पूरा करने के लिए वह इन दिनों परिवार समेत मखाना फोड़ने के काम में लगा है.

दिलीप सहनी और उसका परिवार मखाना फोड़ने का काम वर्षों से कर रहा है. इसी मजदूरी के पैसे से दिलीप के पिता ने उसे मध्य प्रदेश के भोपाल से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कराई. राज्य में टॉप करने पर मध्य प्रदेश के गृह मंत्री ने दिलीप को सम्मानित किया और सर्टिफिकेट प्रदान किया.

मलेशिया जाने के लिए कम पड़ रहे पैसे

दिलीप का कैम्पस सेलेक्शन भी हो चुका है. उसे मलेशिया में नौकरी ज्वॉइन करना है, जहां जाने के लिए उसे डेढ़ लाख रूपये की आवश्यकता है. इसमें 30 हजार रूपये कम पड़ रहे हैं. इसे पूरा करने के लिए दिलीप भी अपने परिवार के साथ पूर्णियां आकर मखाना फोड़ने का काम कर रहा है ताकि जल्द से जल्द पैसे का इंतजाम हो सके.

मखाना फोड़ने का काम कर जुटा रहा पैसे

दिलीप सहनी का मूल घर दरभंगा जिले में है, जहां से उसका परिवार हर साल बरसात के मौसम में पांच महीने के लिए पूर्णियां आ जाता है. यहां पूरा परिवार मखाना फोड़ने का काम करता है. बेहद मेहनत वाले इस काम में कई बार हाथ भी जल जाते हैं लेकिन मिलते हैं सिर्फ 200 रूपये. इस तरह परिवार के सभी सदस्य मिलकर 800 रूपये रोज कमा लेते हैं. सीजन खत्म होने पर उसके पिता लालटुन सहनी नेपाल जाकर आइसक्रीम बेचते थे. इस तरह पैसे जमाकर उन्होंने बेटे को इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कराई.

लालटुन सहनी बताते हैं कि बेटे की पढ़ाई के लिए जब उन्हें पैसों की जरूरत थी तो उन्हें कहीं से भी मदद नहीं मिली. न तो कोई सरकारी मदद मिली और न ही बैंक ने लोन दिया. उस वक्त उन्होंने पुश्तैनी 11 कट्ठा जमीन बेचकर भोपाल में दिलीप का दाखिला कराया और मजदूरी से पैसे जोड़-जोड़ कर उसकी पढ़ाई पूरी कराई.



दिलीप भी आहत है कि उस जैसे विद्यार्थी के लिए सरकारी मदद सिर्फ कागजों पर रहती है. हकीकत में कोई फायदा नहीं मिलता. दिलीप ने कहा कि उसने कहां-कहां चक्कर नहीं काटे लेकिन पैसे कर्ज के रूप में भी नहीं मिले. आखिर में मेहनत-मजदूरी ही सहारा बनी. मेरे पिता ने प्रतिदिन 18 घंटे मजदूरी करके मुझे पढ़ाया. वह मेरे लिए भगवान हैं.

दिलीप की मां ललिया देवी कहती हैं कि किसी भी तरह से बेटे के लिए 30 हजार का इंतजाम करके उसे मलेशिया जरूर भेजेंगी. छोटा बेटा भी पढ़ रहा है और वह भी खाली समय में मखाना फोड़ने का काम में अपने पिता की मदद करता है. दिलीप कमाने लगेगा तो भाई को भी पढ़ाकर बड़ा आदमी बना देगा.

 

 

राजेश शर्मा


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