अनोखी होली: यहां रंगों से नहीं, श्मशान में चिता-भस्म की राख से खेली जाती है होली
बनारस के मणिकर्णिका घाट पर शिव भक्त, बाबा मसान नाथ के चरणों में श्मशान की राख से होली खेलते हैं।
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होली के इस सप्ताह में हर ओर रंगों की ही चर्चा है। पर हमारे देश में एक स्थान ऐसा भी जहां श्मशान में मौजूद चिता की राख से होली खेली जाती। जी हाँ बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में देवस्थान और महाश्मसान का एक अलग ही महत्व है। जहाँ जन्म और मृत्यु दोनों मंगल है।
बनारस के मणिकर्णिका घाट पर शिव भक्त, बाबा मसान नाथ के चरणों में श्मशान की राख से होली खेलते हैं। ऐसा माना जाता है मर्णिकर्णिका घाट ऐसा घाट है जहां कभी चिता की आग शांत नहीं होती।
हर साल रंगभरी एकादशी के अगले दिन महाश्मशान मणिकर्णिका पर यह होली खेली जाती है।
मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन पार्वती का गौना करने के बाद देवगण और भक्तों के साथ बाबा होली खेलते हैं। लेकिन भूत-प्रेत,पिशाच आदि जीव-जंतु उनके साथ नहीं खेल
पाते। इसलिए अगले दिन बाबा महाश्मशान मणिकर्णिका तीर्थ पर स्नान करने आते हैं और अपने गणों के साथ चिता की भस्म से होली खेलते हैं। और इस भस्म से तारक मंत्र प्रदान करते हैं।
काशी में मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के साथ होली खेलने और उत्सव मनाने के लिए भूत-प्रेत, पिशाच, चुड़ैल, डाकिनी-शाकिनी, औघड़, सन्यासी, अघोरी, कपालिक, शैव-शाक्त सब आते
हैं।
डमरुओं की गूंज और हर-हर महादेव के जयकारे व पान और ठंडाई के साथ एक-दूसरे को मणिकर्णिका घाट की भस्म लगाते हैं।
ये होली काशी में मसाने की होली के नाम से जानी जाती है और पूरे विश्व में केवल काशी में खेली जाती है।
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