पुलिस थाना हैं पर पुलिस नहीं, 23 साल में केवल 55 मुकदमे दर्ज
थाने तो बहुत से देंखे होंगे आपने पर कोई ऐसा थाना सुना हैं. जहां लोकॉप तो है पर चोर नहीं.
पुलिस थाना हैं पर पुलिस नहीं |
जैसलमेर जिले में एक थाना ऐसा भी है जहां 23 वर्ष में महज 55 मुकदमे दर्ज हुए हैं और जहां पुलिस कर्मियों के पास कोई काम ही नहीं है.
कई बार पूरे साल में एक भी मुकदमा दर्ज नहीं होता. इस थाने को 23 साल तक हेड कांस्टेबल ही संभालता रहा और अब जा कर इस थाने को थानेदार मिला है.
शाहगढ़ का यह थाना जैसलमेर में पाकिस्तान सीमा से सटा है, जहां 23 वर्ष में महज 55 मुकदमे दर्ज हुए हैं.
थाना वीरान मरुस्थल क्षेत्र में है, जहां आसपास कोई मनुष्य मुश्किल से ही नजर आता है.
पुलिसकर्मियों का कहना है कि जब वह गश्त पर निकलते हैं, तब इक्का-दुक्का लोग मिलते हैं. अब पहली बार थाने की कमान सब इंस्पेक्टर को सौंपी गई है.
पुलिस सूत्रों के अनुसार, वर्ष 1993 में सीमा पार से तस्करी रोकने के लिए शाहगढ़ थाना खोला गया था.
तारबंदी के बाद तस्करी पर लगाम भी लगी. सीमावर्ती क्षेत्र के इस थाने पर 200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का जिम्मा है.
इस थाने के अन्तर्गत दो पंचायतों की 10 हजार की आबादी आती है. वर्ष 2016 में अब तक कोई मामला नहीं दर्ज हुआ. 2015 में सिर्फ दो मामले दर्ज हुए, वे भी सड़क दुर्घटना के. वर्ष 2014 में तीन मामले दर्ज हुए, एक मारपीट का, दूसरा चोरी का और तीसरा सड़क दुर्घटना का.
राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कपिल गर्ग ने बताया कि थाने में बिजली सौर ऊर्जा से मिलती है और पानी बाहर से लाया जाता है.
उन्होंने बताया कि कभी साल भर मुकदमा दर्ज न हो लेकिन अंत में अगर एक मुकदमा दर्ज हो जाए और उसका निस्तारण न हो तो भी वर्ष के अंत में पेंडेंसी का प्रतिशत 100 आता है.
पुलिस उपाधीक्षक नरेन्द्र कुमार दवे ने थाने में 23 साल बाद नियुक्ति होने पर कहा ‘एएसआई स्तर का अधिकारी थाने का प्रभारी रहा है. थाने में दर्ज होने वाले मामले, इन्स्पेक्टर स्तर के अधिकारी की उपलब्धता और कार्य सम्पादन के आधार पर इन्स्पेक्टर की नियुक्ति की जाती है’.
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