81 साल के रिटायर्ड आईएएस को 47 साल बाद मिला गोल्ड मेडल
Last Updated 24 Jun 2016 03:16:30 PM IST
अंग्रेजी की कहावत है कि ‘आईदर टॉप और नॉट एक्जिस्ट.’ यानी या तो सर्वश्रेष्ठ मिले अथवा कुछ भी नहीं. इसी आत्मविश्वास को सही सिद्ध किया है 81 साल के रिटायर्ड आईएएस अजीत सिंह सिंघवी ने.
(फाइल फोटो) |
बीकानेर के 81 वर्षीय रिटार्यड आईएएस अजीत सिंह सिंघवी ने 47 साल के कड़े संघर्ष के बाद हाईकोर्ट में सम्मान की लड़ाई जीती. सुनवाई के दौरान उनके दो वकील दिवंगत हो गए और कई जज पदोन्नत होकर सेवानिवृत्त भी हो गए.
आज से 47 साल पहले वर्ष 1969 में एलएलबी के दौरान जिस तैयारी से उन्होंने परीक्षा दी तो राजस्थान विश्वविद्यालय ने मेरिट में दूसरे स्थान पर चुना. विश्वविद्यालय के फैसले से असहमत सिंघवी ने रिजल्ट को नहीं माना और कोर्ट चले गए.
सिंघवी को पूरा भरोसा था कि उन्हें मेरिट में प्रथम स्थान ही मिलना चाहिए. अपना संघर्ष जारी रखते हुए वह वर्ष 1979 में आईएएस भी बने. कुछ साल बाद कोर्ट ने तो फैसला सिंघवी के पक्ष में दिया मगर जो छात्र पहले मेरिट में टॉप आया था उसने आपत्ति लगा दी.
इस तरह मुंसिफ, जिला एवं सत्र न्यायाधीश के बाद हाईकोर्ट तक मामला गया. जहां से वर्ष 2003 में सिंघवी को गोल्ड मेडल देने का निर्णय दिया गया. इस निर्णय की राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर ने 12 वर्षों तक पालना नहीं की.
बहरहाल अब रिजल्ट आने के 47 साल बाद बृहस्पतिवार को राजस्थान विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति जेपी सिंघल उन्हें एक सादे समारोह में गोल्ड मेडल प्रदान किया. उल्लेखनीय है कि 81 वर्षीय बुजुर्ग 64 साल के कुलपति के हाथों सम्मानित हुए.
अपने जमाने में भारतीय प्रशासनिक अधिकारी के रूप में चर्चित रहे सिंघवी डूंगर कॉलेज के छात्र रह चुके हैं और बीकानेर के कलक्टर भी रह चुके हैं. एक तय यह भी है कि मामला इतना लंबा चला कि उनके दो वकील भी दिवंगत हो गए और सुनवाई करने वाले कई जज पदोन्नत होकर रिटार्यड भी हो गए.
सिंघवी ने कहा कि फैसले से खुश तो हूं, लेकिन जितना समय लगा उससे न्याय होना नहीं मानता. वैसे भी इस मामले में 300 पेशियां भुगत चुका हूं. पर अब संतोष है कि अंत में सत्य की जीत हुई.
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