अलविदा मुनव्वर राना साहब
हमसे मोहब्बत करने वाले रोते ही रह जाएंगे, हम किसी दिन सोए तो फिर सोते ही रह जाएंगे, मैं अपने आपको इतना समेट सकता हूं, कहीं भी क़ब्र बना दो मैं लेट सकता हूं।
![]() अलविदा मुनव्वर राना साहब |
दुनिया तेरी रौनक़ से मैं अब ऊब रहा हूं
तू चांद मुझे कहती थी मैं डूब रहा हूं
उर्दू अदब की दुनिया में आज शोक की लहर दौड़ गई जब बेहद अफसोसनाक ख़बर आई कि शायरी की दुनिया में अहम मक़ाम रखने वाला एक ऐसा सितारा ग़ुरुब हो गया जिसकी चमक ने ना जाने कितने नौजवानों को शायर बना दिया। हम बात कर रहे हैं मुनव्वर राना साहब की। उर्दू शायरी का जब ज़िक्र आता है तो इश्क़, महबूब, विसाल ए यार, हिज्र, महबूब का तस्सुवूर और बिछड़ने का ग़म जैसी बातें दिल में उतरती हैं लेकिन मुनव्वर राना साहब की शायरी में इसके अलावा भी एक और ख़ूबसूरत शै बसती थी, वो है मां .... मां पर उन्होंने कई ऐसे शेर कहे हैं जो किसी को भी जज़्बाती कर देगी। उनकी शायरी से मां और बच्चे के बीच रिश्ता और गहरा हो जाता है।
उनका ये शेर देखें कि
"लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती."
मुनव्वर राना साहब के यहां देश भक्ति भी उतनी ही शिद्दत से देखी जा सकती है। आज जहां हमारा समाज फिरक़ापरस्ती की चादर ओढ़े सो रहा है वहीं उनकी शायरी रगों में देश भक्ति, दूसरे मज़हब के लिए इज़्ज़त, और क़ौमी यकजेहती भरने का काम करती है। इनके इस शेर पर ग़ौर करें
जिस्म से मट्टी मलेंगे, पाक हो जाएंगे हम
ऐ वतन इक दिन तिरी ख़ुराक हो जाएंगे हम.
बेटियों के लिए तो मुनव्वर राना बेचैन हो जाते हैं। उनकी मानना था कि बेटी हर हाल में खुशहाल रहे। वो इस बात से वाक़िफ थे कि बच्चियों की ज़िंदगी आसान नहीं होती । वो बेटियों को एक मुकम्मल जीवन देने की वकालत करते हैं। वो लिखते हैं-
ऐसा लगता है कि जैसे ख़त्म मेला हो गया
उड़ गईं आंगन से चिड़ियां घर अकेला हो गया
उन्होंने तक़रीबन हर रिश्ते को अपनी ग़ज़लों में ख़ास मक़ाम दिया है। भाई के लिए उनका ये शेर देखें कि
मैं इतनी बेबसी में क़ैद—ए—दुश्मन में नहीं मरता
अगर मेरा भी इक भाई लड़कपन में नहीं मरता
मुनव्वर राना ने इश्क़ आशिक़ी के तक़रीबन हर रंग को अपनी शायरी के कैनवस पर उजागर किया। उनकी इश्क़िया शायरी इतनी पुरसुकून होती है कि जो शख्स मुहब्बत जैसी हसीन शै से घबराता हो वो भी उनके शेरों से लुत्फअंदोज़ होता है। उनका ये शेर देखिए कि
एक क़िस्से की तरह वो तो मुझे भूल गया
इक कहानी की तरह वो है मगर याद मुझे
उनका एक और खूबसूरत शेर देखिए कि
मैं इस से पहले कि बिखरूँ इधर उधर हो जाऊँ
मुझे सँभाल ले मुमकिन है दर-ब-दर हो जाऊँ
इस शेर में तड़प, ना छोड़ने की गुज़ारिश,बिखरने और दर ब दर होने का डर साफ झलक रहा है।
किडनी और दिल से जुड़ी बीमारियों से वो काफी समय से लड़ रहे थे। लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई में भर्ती थे। लंबे वक्त से डायलिसिस पर भी थे। फेफड़ों में भी काफी इंफेक्शन था। इसकी वजह से उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। रविवार शाम से उनकी हालत गंभीर होने लगी। 14 जनवरी की रात उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उन्हें बचाया नहीं जा सका करीब 11 बजे डाक्टरों ने जवाब दे दिया और अदब की दुनिया एक बड़े शायर से महसूम हो गई। वो बहतरीन शायर के साथ साथ एक बेबाक वक्ता भी थे। अपनी शायरी के ज़रिए हुकूमत से आंखों में आखें डालकर बात करने की हिम्मत रखते थे। अपनी बेबाकी और साहस के लिए वो उस वक्त काफी चर्चा में आए जब देश में बढ़ती सामप्रदायिकता के ख़िलाफ उन्होनें अपना साहित्य अकादनी अवार्ड वापस कर दिया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी x पर भावभीनी श्रद्धाजंलि दी उन्होंने लिखा कि श्री मुनव्वर राणा जी के निधन से दुख हुआ। उन्होंने उर्दू साहित्य और कविता में समृद्ध योगदान दिया। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं। उनकी आत्मा को शांति मिलें। वहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने X पर उनका एक शेर पोस्ट कर के दुख जताया। क्या ख़ास क्या आम हर कोई उनके जाने से उदास है।
हमसे मोहब्बत करने वाले रोतो ही रह जाएंगे,
हम किसी दिन सोए तो फिर सोते ही रह जाएंगे,
मैं अपने आपको इतना समेट सकता हूं,
कहीं भी क़ब्र बना दो मैं लेट सकता हूं
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