ट्रायल कोर्ट ने दी थी फांसी सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चोरी का माल बरामद होने का यह मतलब नहीं है कि वह व्यक्ति हत्या में भी शामिल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट |
हत्या में उसके शामिल होने का सीधा सबूत होना चाहिए वरना उसे सजा देना मुनासिब नहीं है। जस्टिस संजय किशन कौल और केएम जोसेफ की बेंच ने सोनू उर्फ सुनील को वारदात के 12 साल बाद हत्या के आरोप से बरी कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने सोनू सहित पांच को फांसी की सजा सुनाई थी।
मध्य-प्रदेश हाई कोर्ट ने सभी की सजा उम्र कैद में तब्दील कर दी थी। सोनू ने उम्र कैद की सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और सफलता पाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एफआईआर में बाकी सभी अभियुक्तों को नामजद किया गया है, जबकि सोनू का नाम नहीं लिया गया।
उसकी गिरफ्तारी भी वारदात के तकरीबन दो माह बाद हुई। पुलिस ने उसकी शिनाख्त परेड भी नहीं कराई। लूटा गया एक मोबाइल उससे बरामद तो हुआ, लेकिन इस बात का सबूत सामने नहीं आ सका कि हत्या की वारदात में वह अन्य लोगों के साथ शामिल था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संदिग्ध सबूतों के आधार अभियुक्त को सजा देना उचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने उसे बरी कर दिया।
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