1949 से पहले गर्भगृह में राम की मूर्ति नहीं थी: मुस्लिम पक्षकार
उच्चतम न्यायालय में अयोध्या विवाद की 30वें दिन की सुनवाई के दौरान मंगलवार को मुस्लिम पक्षकार ने कहा कि 1949 में पता चला कि गर्भ गृह में भगवान का अवतरण हुआ है, लेकिन उससे पहले वहां मूर्ति नहीं थी।
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सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नीर की संविधान पीठ के समक्ष दलील दिया कि पौराणिक विश्वास के अनुसार पूरे अयोध्या को भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता रहा है, लेकिन इसके बारे में कोई एक खास जगह नहीं बतायी गयी।
उन्होंने हिंदू पक्ष के गवाह की गवाही पढ़ते हुए कहा कि लोग राम चबूतरे के पास लगी रेलिंग की तरफ जाते थे। मूर्ति गर्भ गृह में कैसे गई इस बारे में उसको जानकारी नहीं है।
धवन ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल ने माना था कि राम चबूतरे पर पूजा की जाती थी। उन्होंने उच्च न्यायालय के एक जज की टिप्पणी का विरोध किया, जिन्होंने कहा था कि मुस्लिम वहां पर अपना कब्जा साबित नहीं कर पाये थे।
धवन ने कहा कि मुस्लिम वहां पर नमाज पढ़ते थे, इस पर सवाल उठाया जा रहा है। वर्ष 1949 में 22-23 दिसंबर की रात को जिस तरह से मूर्ति को रखा गया, वह हिंदू नियम के अनुसार सही नहीं है।
आज उन्होंने अपनी दलील पूरी कर ली। उन्होंने कुल 14 दिन अपनी दलीलें पेश की। अब मुस्लिम पक्षकार की ओर से जफरयाब जिलानी दलील दे रहे हैं।
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