1984 के सिख विरोधी दंगों पर आए फैसले को मृतक के भाई ने किया स्वागत

Last Updated 21 Nov 2018 12:22:44 PM IST

साल 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के दौरान महिपालपुर में दो युवकों की हत्या किए जाने के मामले में अदालत द्वारा दिए गए फैसले का मृतकों में से एक के भाई ने स्वागत किया है।


1984 के दंगों पर आए फैसले को मृतक के भाई ने सराहा (फाइल फोटो)

साल 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के दौरान महिपालपुर में दो युवकों की हत्या किए जाने के मामले में अदालत द्वारा दिए गए फैसले का मृतकों में से एक के भाई ने स्वागत करते हुए कहा, ‘‘पिछले 34 साल में ऐसा भी समय आया जब मैं खुद को खत्म करना चाहता था, लेकिन अदालत के फैसले के बाद न्यायपालिका में मेरा विश्वास बहाल हुआ है।’’

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अजय पांडे ने मंगलवार को 1984 के दंगों के एक मामले में एक दोषी यशपालंिसह को मौत की सजा और एक अन्य दोषी नरेश सहरावत को अपराध के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई है।    

दंगों के दौरान मारे गए एक युवक हरदेव सिंह के भाई संतोख सिंह की ओर से दायर याचिका के बाद गृह मंत्रालय द्वारा दिए आदेश पर वर्ष 2015 में मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया था। संतोख सिंह ने इस फैसले को एक ‘‘तोहफा’’ बताया। उन्होंने कहा, ‘‘फैसला न्यायपालिका की ओर से हमारे परिवार को एक तोहफा है, जिसने (परिवार ने) इतने वर्षों में बहुत कुछ झेला है। मैं जांच अधिकारी, एसआईटी के निरीक्षक जगदीश कुमार का मामले को तीन वर्षों में तार्किक अंत तक ले जाने के लिए शुक्रिया अदा करना चाहता हूं।’’    

यह मामला न्यायमूर्ति जे डी जैन और डी के अग्रवाल की समिति की सिफारिश पर 1993 में वसंत कुंज पुलिस थाने में दर्ज किया गया था। इस सिफारिश का आधार संतोख सिंह का 9 सितंबर 1985 को न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र आयोग के समक्ष दाखिल हलफनामा था। दिल्ली पुलिस के दंगा रोधी प्रकोष्ठ ने जांच की। लेकिन उसे किसी भी आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सबूत नहीं मिल पाए। दिल्ली पुलिस ने साक्ष्य के अभाव में इस मामले को 1994 में बंद कर दिया था।    

एसआईटी दंगों से जुड़े करीब 60 मामलों की जांच कर रही है।     

अदालत ने दोनों अभियुक्तों पर 35-35 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और यह राशि पीड़ितों हरदेव सिंह और अवतार सिंह के परिवारों के सदस्यों को मुआवजे के तौर पर दिए जाने का निर्देश दिया।    

एसआईटी के गठन के बाद पहली बार मौत की सजा सुनायी गयी है। इससे पहले किशोरी नामक एक व्यक्ति को सिख दंगों के सात मामलों में सुनवाई अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने केवल तीन मामलों में मौत की सजा की पुष्टि की जिसे बाद में उच्चतम न्यायालय ने उम्रकैद में बदल दिया।    

सुरक्षा कारणों से कार्यवाही तिहाड़ जेल के अंदर हुयी। सुनवाई के आखिरी दिन 15 नवंबर को पटियाला हाउस जिला अदालत परिसर में यशपाल पर हमला किया गया था।    

अदालत ने मौत की सजा की पुष्टि के लिए मामले की मूल फाइल दिल्ली उच्च न्यायालय में जमा कराने का निर्देश दिया।    

फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए संतोख सिंह ने कहा ‘‘एसआईटी ने बिना किसी पक्षपात के मामले की जांच की। पिछले 34 साल में कई बार मेरी उम्मीद टूटी और मैंने खुद को खत्म कर देने के बारे में तक सोचा। लेकिन अदालत के फैसले ने न्यायतंत्र में मेरा विश्वास बहाल कर दिया।’’    

संतोख सिंह को हालांकि शिकायत है कि इतने साल में किसी भी राजनीतिक दल ने उनकी मदद नहीं की। यहां तक की घटना के बाद करीब 12 साल तो उनके परिवार ने घोर आर्थिक तंगी में गुजारे। उन दिनों परिवार की मदद करने के लिए उन्होंने दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधन समिति का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि 1984 में अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में उन्होंने अपने भाई के साथ दीपावली मनाई थी। एक नवंबर 1984 में उनके भाई को निर्ममतापूर्वक मार डाला गया।    



संतोख ने बताया ‘‘मेरे भाई पर लोहे की छड़ों, चाकू से हमला किया गया और जब उसने हमलावरों से बचने के लिए पहली मंजिल पर छिपना चाहा तो लोगों ने उसे वहां से पकड़ कर नीचे फेंक दिया। हमलावरों ने पहले भाई की दुकान लूट कर जला दी फिर भाई पर हमला किया गया।’’ उन्होंने बताया ‘‘छावनी इलाके में मेरे ढाई साल के बेटे को जला दिया गया। एक डॉक्टर ने समय पर उसे नहीं बचाया होता तो हम उसे लगभग खो चुके थे। आज भी वह सब याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।’’
   
एक नवंबर 1984 को हरदेव सिह, कुलदीप सिंह और संगत सिंह तीनों महिपालपुर में अपनी किराने की दुकान पर थे जिसे करीब 800 से 1000 लोगों की हिंसक भीड़ ने निशाना बनाया। हरदेव, कुलदीप, संगत ने दुकान बंद की और पहली मंजिल पर अपने किरायेदार सुरजीत सिंह के घर छिपने के लिए भागे। कुछ ही देर में भाग कर अपनी जान बचाते हुए
अवतार सिंह भी वहां आ गया। इन लोगों ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।    

उनकी दुकान जला कर भीड़ सुरजीत के घर आई और दरवाजा तोड़ कर हमला कर दिया। हरदेव और संगत को छुरा मारा गया। फिर सभी को बालकनी से नीचे फेंक दिया गया।    

आरोपियों ने कमरे में केरोसिन डाल कर आग लगा दी। घायलों को सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया जहां अवतार और हरदेव की मौत हो गई। शेष गंभीर रूप से घायल हुए थे जिनका लंबे समय तक इलाज चला।
 

 

भाषा
नई दिल्ली


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