बेटियों का भी पुश्तैनी संपत्ति में जन्मजात अधिकार

Last Updated 04 Feb 2018 01:25:35 AM IST

एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन से पहले दायर मामलों में भी बेटियों को बेटों के बराबर ही पुश्तैनी संपत्ति में अधिकार मिलेगा.


सुप्रीम कोर्ट

जन्म के साथ ही बेटियों का हक बेटों के बराबर है, इसलिए उन्हें संपत्ति में उनके हक से वंचित नहीं किया जा सकता.
जस्टिस अर्जन कुमार सीकरी और अशोक भूषण का फैसला महिला सशक्तीकरण के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है. 2005 के संशोधित कानून की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेटियों को चल-अचल सपंत्ति में हक सिर्फ अधिनियम में बदलाव की तारीख से नहीं, बल्कि उन मामलों में भी मिलेगा, जिनमें नया कानून आने तक अंतिम डिक्री जारी नहीं हुई थी. नौ सितम्बर, 2005 में संशोधित कानून लागू हुआ, लेकिन 20 दिसंबर, 2004 को इसे मूर्तरूप दे दिया गया था. इन दोनों तारीखों को लेकर कई हाईकोर्टों के विरोधाभासी फैसलों को स्पष्ट करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस दरम्यिान जो भी केस अदालतों में पेंडिंग थे, उनमें नए कानून के अनुसार बेटियों को लाभ मिलेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट और राजाजीनगर जिला अदालत के फैसलों को पलट दिया. दोनों अदालतों ने सुमन सुरपुर और उसकी बहन को उनके मृतक पिता की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया था. हाई कोर्ट ने कहा था कि चूंकि बेटियों का जन्म नए कानून के अमल में आने से पहले हुआ था, लिहाजा उन्हें उनके पिता स्वर्गीय गुरुलिंगप्पा सवदी की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिल सकता. पिता की मौत 2001 में हुई थी. गुरुलिंगप्पा के दो बेटे, दो बेटियां थीं. बेटे-बेटियों के अलावा उनकी पत्नी भी थी जिनका संपत्ति पर अधिकार था.

गुरुलिंगप्पा के एक बेटे अरुण कुमार की मौत के बाद उसके बेटे अमर ने संपत्ति के बंटवारे के लिए जिला अदालत में दावा दायर किया था. जिला अदालत ने सुमन और उसकी बहन को बंटवारे में शेयर नहीं दिया था. हाई कोर्ट ने भी इसी तरह का रुख अपनाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुरुलिंगप्पा की संपत्ति के पांच हिस्से होंगे. दो बेटियों, दो बेटों और विधवा को समान हिस्सा मिलेगा. चूंकि गुरुलिंगप्पा के एक बेटे अरुण की मौत हो गई है, लिहाजा उसके बच्चों को मृतक के हिस्से की 20 प्रतिशत प्रापर्टी मिलेगी. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के जनवरी 2012 और ट्रायल कोर्ट के 2007 में दिए गए जजमेंट को सिरे से खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2005 में कानून में संशोधन आने पर ट्रायल कोर्ट को नए अधिनियम को अमल में लाना चाहिए था. वादी से याचिका में बदलाव करने के लिए कहा जाना चाहिए था. ट्रायल कोर्ट ने ऐसा न करके गलती की. हाई कोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले पर मुहर लगाकर कानून के अनुरूप निर्णय नहीं दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या गुरुलिंगप्पा की दोनों बेटियों को इस आधार पर संपत्ति में उनके हिस्से से वंचित किया जा सकता है कि वह संशोधित अधिनियम के लागू होने से पहले पैदा हुई? क्या वह बेटों की तरह हमवारिस नहीं हैं?

विवेक वार्ष्णेय
सहारा न्यूज ब्यूरो


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