VIDEO: बॉम्बे HC ने महिलाओं को दी हाजी अली दरगाह में मजार तक जाने की इजाजत
बंबई हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए मुंबई की हाजी अली दरगाह के भीतरी भाग में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को हटा दिया.
(फाइल फोटो) |
कोर्ट कहा है कि यह प्रतिबंध किसी भी व्यक्ति के मूलभूत अधिकार का विरोधाभासी है.
हाजी अली दरगाह न्यास इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना चाहता है और न्यास की ओर से दायर याचिका के कारण अदालत ने अपने इस आदेश पर छह हफ्ते के लिए रोक लगा दी है.
न्यायमूर्ति वी एम कानाडे और न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की खंडपीठ ने कहा, ‘‘हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर लगाया गया प्रतिबंध भारत के संविधान की धारा 14, 15, 19 और 25 का विरोधाभासी है.’’
इन धाराओं के तहत किसी भी व्यक्ति को कानून के तहत समानता हासिल है और अपने मनचाहे किसी भी धर्म का पालन करने का मूलभूत अधिकार है. ये धाराएं धर्म, लिंग और अन्य आधारों पर किसी भी तरह के भेदभाव पर पाबंदी लगाती हैं और किसी भी धर्म को स्वतंत्र रूप से अपनाने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने की पूरी स्वतंत्रता देती हैं.
दरगाह के मजार वाले हिस्से (गर्भगृह) में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को जाकिया सोमन और नूरजहां नियाज ने चुनौती दी थी. खंडपीठ ने उनकी याचिका को भी स्वीकार कर लिया है.
हाईकोर्ट ने कहा, ‘‘राज्य सरकार और हाजी अली दरगाह न्यास को दरगाह में प्रवेश करने वाली महिलाओं की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम सुनिश्चित करना होगा.’’
इस साल जून में हाईकोर्ट ने याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
इस याचिका में कहा गया है कि कुरान में लैंगिग समानता अंतर्निहित है और पाबंदी का फैसला हदीस का उल्लंघन करता है जिसके तहत महिलाओं के मजारों तक जाने पर कोई रोक नहीं है.
महाराष्ट्र सरकार ने पहले अदालत में कहा था कि हाजी अली दरगाह के मजार वाले हिस्से में महिलाओं के प्रवेश पर रोक तभी होनी चाहिए जब कि कुरान में ऐसा उल्लेख किया गया हो.
महाराष्ट्र के तत्कालीन महाअधिवक्ता श्रीहरि अनेय ने तर्क दिया था कि किसी विशेषज्ञ द्वारा कुरान की व्याख्या के आधार पर महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को न्याययंगत नहीं ठहराया जा सकता.
दरगाह न्यास ने अपने फैसले का यह कहते हुए बचाव किया था कि कुरान में यह उल्लेख है कि किसी भी महिला को पुरूष संत की दरगाह के करीब जाने की अनुमति देना गंभीर गुनाह है.
न्याय की ओर से पेश अधिवक्ता शोएब मेमन ने पहले कहा था, ‘‘सउदी अरब में मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश करने की इजाजत नहीं है. इबादत करने के लिए उनके लिए अलग स्थान की व्यवस्था है. हमने (न्यास) उनके प्रवेश पर रोक नहीं लगाई है. यह नियम केवल उनकी सुरक्षा के लिए है. न्यास केवल दरगाह का प्रबंध ही नहीं देखता है बल्कि धर्म से संबंधित मामलों को भी देखता है.
मालू्म हो कि यहां 2011 तक महिलाओं के प्रवेश पर कोई पांबदी नहीं थी. लेकिन 2012 में दरगाह मैनेजमेंट ने महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगा दी थी. उनका कहना था कि शरिया कानून के मुताबिक, महिलाओं का कब्रों पर जाना गैर-इस्लामी है.
सामाजिक कार्यकर्ता तृप्ति देसाई ने कहा कि अब तक हमारे संवैधानिक अधिकारों को छीना जा रहा था.
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