एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश करे भारत: राष्ट्रपति

Last Updated 03 May 2016 08:04:35 PM IST

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत को अपनी मौजूदगी में सुधार के प्रयास करने की जरूरत है.


राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी

    
पापुआ न्यू गिनी (पीएनजी) और न्यूजीलैंड में चीन प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘आप जानते हैं कि कुछ भी अपने आप नहीं होता. हमें कोशिश करनी होगी.’’
      
पापुआ न्यू गिनी और न्यूजीलैंड की छह दिवसीय यात्रा से लौटते वक्त एयर इंडिया के विशेष विमान में पत्रकारों से बातचीत के दौरान राष्ट्रपति ने ये बातें कही. राष्ट्रपति पहली बार दोनों देशों की आधिकारिक यात्रा पर गए थे.
      
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत न्यूजीलैंड के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को जल्द अंतिम रूप देने के लिए काम करने पर तैयार है.
      
उन्होंने कहा, ‘‘हमारी आपसी चिंताओं का संतोषजनक समाधान तलाशने की जरूरत को ध्यान में रखते हुए एफटीए के जल्द संपन्न होने की दिशा में काम करने की भारत की चाहत से मैंने अवगत करा दिया है.’’
      
प्रणब ने कहा, ‘‘हम चुप नहीं हैं. एफटीए पर 10 दौर की वार्ता हो चुकी है. दुर्भाग्यवश वार्ता 2010 में शुरू हुई और हम इसे अंतिम रूप देने में सफल नहीं हो पाए हैं.’’
      
उन्होंने कहा, ‘‘कुछ कृषि उत्पादों को लेकर कुछ समस्याएं हैं, लेकिन मेरा मानना है कि जब हमारी कृषि को पूर्ण संरक्षण की जरूरत थी, उसके बाद से अब तक हमने काफी लंबा सफर तय कर लिया है..क्योंकि हम दूध के सबसे बड़े उत्पादक हैं. लिहाजा, हरित क्रांति के अलावा श्वेत क्रांति भी हासिल की गई.’’
     
राष्ट्रपति ने कहा कि हो सकता है कि 1960 और 1970 या 1980 के दशकों में सरकार की ओर से अमल में लाई गई नीतियां 2015-16 में प्रासंगिक नहीं हों.
     
उन्होंने कहा, ‘‘मैं समझता हूं कि सरकार इस पहलू पर सावधानी से विचार कर रही है. निश्चित तौर पर जब आप एफटीए में दाखिल होते हैं तो इससे आपके द्विपक्षीय व्यापार में अच्छा-खासा इजाफा होता है.’’ उन्होंने श्रीलंका का उदाहरण भी दिया जिसके साथ एफटीए पर दस्तखत के बाद दोनों देशों के बीच का व्यापार 20 गुना तक बढ़ गया.
     
राष्ट्रपति ने एशिया-प्रशांत द्वीपीय देशों के दो शिखर सम्मेलन आयोजित करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की सराहना की. उन्होंने कहा, ‘‘तीसरा शिखर सम्मेलन पापुआ न्यू गिनी में हो रहा है और मुझे उम्मीद है कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल में उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि शामिल होंगे.’’
     
उन्होंने कहा, ‘‘लिहाजा, एक शुरूआत की जा चुकी है और आने वाले समय में इसे इसके तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचाया जाएगा.’’
     
प्रणब ने कहा कि वह दोनों देशों की अपनी यात्रा से संतुष्ट हैं.
     
उन्होंने कहा, ‘‘जहां तक पीएनजी की बात है, अब तक कोई भी नेता पीएनजी की यात्रा पर नहीं गया. दूसरी ओर, आप उनके रूख को देखिए, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की भारत की वाजिब दावेदारी पर स्वैच्छिक तौर पर समर्थन दिया है.’’
     
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘लिहाजा, मैं मानता हूं कि यह यात्रा अहम थी और मैं इस यात्रा के परिणाम से संतुष्ट हूं..मैं महसूस करता हूं कि हमारे लिए यह अपने संबंधों को विस्तार देने का समय है..व्यापार, वाणिज्य, निवेश एवं संबंधित क्षेत्रों में तकनीकी विशेषज्ञता साझा करने के मामले में.’’
    
शिक्षा के क्षेत्र में भारत और न्यूजीलैंड के बीच सहयोग के मुद्दे पर राष्ट्रपति ने कहा कि यात्रा के दौरान उनका फोकस तीन पहलुओं पर था- शिक्षकों का आदान-प्रदान, छात्रों का आदान-प्रदान कार्यक्रम और मिलजुलकर शोध करना.
    
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘इन तीन क्षेत्रों में, यदि हम सफल होते हैं, तो मुझे पूरा यकीन है कि हम प्रगति करेंगे और एक-दूसरे के अनुभव एवं ज्ञान से लाभ प्राप्त करेंगे. हमारा रूख ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम सब जानते हैं और हम हर चीज के विशेषज्ञ हैं. हमें छोटे-बड़े देशों से काफी कुछ सीखना है.’’
    
उन्होंने कहा, ‘‘और तो और, इन रिश्तों में एक और पहलू है- आर्थिक गतिविधियों का केंद्र जी-8 देशों या यूरोप एवं उत्तर अमेरिका से उभरती अर्थव्यवस्थाओं की ओर अग्रसर है. इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए और हम उस आर्थिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले हो सकते हैं.’’
    
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘यदि हम इसका लाभ ले सकते हैं तो लेना चाहिए. वरना हम पीछे छूट जाएंगे. दूसरे इस जगह को हासिल कर लेंगे, कुछ भी खाली नहीं रहने वाला.’’
    
उन्होंने कृषि क्षेत्र में भी न्यूजीलैंड और भारत के सहयोग को गहरा बनाने की जरूरत पर जोर दिया.
 



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