इस्लामिक स्टेट भारत के लिए नयी चुनौती, रोकने के लिए 'ऑपरेशन चक्रव्यूह'

Last Updated 02 Aug 2015 01:53:00 PM IST

आतंकी संगठन आईएसआईएस अब भारत में पैर पसार रहा है. खुफिया रिपोर्ट के अनुसार 12 राज्यों में इससे जुड़ी गतिविधियों में तेजी आई है.


इस्लामिक स्टेट भारत के लिए नयी चुनौती, रोकने के लिए 'ऑपरेशन चक्रव्यूह' (फाइल फोटो)

इससे प्रतिदिन 133 युवा आईएस की कट्‌टरपंथी सोच से प्रभावित हो रहे हैं, जिससे सिमी व इंडियन मुजाहिदीन जैसे संगठनों को भी नई ताकत मिल रही है.

खुफिया रिपोर्टों की इस पृष्ठभूमि में केंद्रीय गृह सचिव एलसी गोयल ने 12 राज्यों के गृह सचिवों और पुलिस प्रमुखों से चर्चा की, जिसमें ‘ऑपरेशन चक्रव्यूह’ चलाने पर केंद्र और राज्य में सहमति बनी है.

गोयल ने राज्यों से कहा है कि वे आईबी के अलर्ट को हल्के में कतई न लें, क्योंकि खुफिया एजेंसियां काफी छानबीन और गृह मंत्रालय से संपर्क के बाद ही कोई अलर्ट जारी करती हैं.

गृह सचिव गोयल जल्द ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ ऑपरेशन चक्रव्यूह का ब्लूप्रिंट तैयार करेंगे.

ऑपरेशन चक्रव्यूह के लिए 3 रणनीतियां बनाई गई है. पहली रणनीति के अनुसार, सोशल मीडिया पर नजर रखने के लिए साइबर पुलिस को सक्रिय किया जाएगा. यदि कोई व्यक्ति कट्‌टरपंथी सोच से जुड़ता है या उसे शेयर करता है तो उस तक पहुंचने की कोशिश की जाएगी.

दूसरी रणनीति, सामुदायिक व्यवस्था को मजबूत करने के लिए मदरसों-मस्जिदों के बड़े मौलानाओं और सामाजिक सरपरस्तों को पुलिस व्यवस्था से जोड़ा जाएगा. उन्हें आईएस की करतूतें बताएंगे, ताकि वो युवकों को समझाए कि वह इस रास्ते पर न जाएं.

तीसरी रणनीति, सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के भगोड़ों को पकडऩे की है. इसके लिए पुलिस कश्मीर में अलगाववादी नेताओं और अन्य कट्टरपंथियों पर नजर रखेंगी। सीमापार के फोन कॉल्स की भी निगरानी की जाएगी. खुफिया रिपोर्टों के मुताबिक 11 भारतीय आईएस में शामिल हो चुके हैं. इनमें से पांच की मौत भी हो चुकी है.

गौरतलब है कि इराक और सीरिया जैसे देशों में कत्लेआम करके दहशत फैलाने वाला खूंखार आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) अब भारत की ओर रुख कर रहा है और जो देश के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है.

रिपोर्टोे के अनुसार इस्लामिक स्टेट के एक दस्तावेज में हाल ही में खुलासा हुआ है कि संगठन भारत में अपने पैर पसारने के लिए बड़े पैमाने पर भर्ती अभियान चला रहा है. आईएस इसके लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहा है. उसकी नजर भारत में भटके हुए नौजवानों के साथ साथ अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान में सक्रिय विभिन्न गुटों के तालिबान लड़ाकों पर भी लगी है. सबसे खतरनाक और चिंता का विषय यह है कि गरीब और अशिक्षित नौजवान ही अब तक आतंकवाद की राह पकड़ रहे थे लेकिन अब शिक्षित और मध्यम वर्ग का युवा भी इन गुटों की ओर आकर्षित हो रहे है.

भले ही सरकार आई एस से संभावित खतरे को हल्के में ले रही है लेकिन रिपोर्टो के अनुसार संगठन के दस्तावेज में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वह भारत में जेहाद के लिए एक संयुक्त व्यवस्था बनाने में जुटा है. जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में आईएस के झंडे लहराया जाना और कुछ युवाओं के पिछले वर्ष आईएस में भर्ती होने के लिए इराक जाना इसका संकेत है. इसके अलावा गत अप्रैल में मध्य प्रदेश में आई एस से जुड़े एक सेल का पता लगना भी गंभीर मामला है.

भारत ने आईएस और उससे एशियाई महाद्वीप में स्थिरता को होने वाले खतरे को अब तक तरजीह नहीं दी है और रिपोर्टों के अनुसार खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले वर्ष कहा था कि आईएस भारत में पैर नहीं जमा पायेगा क्योंकि भारत के मुसलमान हिंसा पसंद नहीं करते.

कुछ रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि भारत में दस्तक देने की आईएस की योजना अमेरिका से टकराव की उसकी वृहद योजना का हिस्सा है. आतंकवाद से निपटने के लिए भारत और अमेरिका की प्रतिबद्धता के मद्देनजर वह भारत को निशाना बनाकर परोक्ष रूप से अमेरिका को भी चुनौती दे रहा है.

मोदी ने गत सितम्बर में अपनी न्यूयार्क यात्रा के दौरान अमेरिका सहित सभी देशों का आह्वान किया था कि मानवता में विास रखने वाला हर देश आतंकवाद के दानव को कुचलने के लिए एकजुट हो जाये.

जानकारों का कहना है कि भारत को आईएस के खतरे से निपटने के लिए अपनी अफगानिस्तान नीति में भारी बदलाव के साथ साथ पाकिस्तान के साथ भी संपर्क साधने से परहेज नहीं करना चाहिए क्योंकि आईएस भारत के खिलाफ अभियान के लिए जेहादियों की भर्ती का केन्द्र उसके पड़ोसी देशों को ही बना रहा है.

इस खतरे से निपटने के लिए सरकार को सैन्य अभियानों के साथ साथ खुफिया तां की भी मदद लेनी होगी. उसे अफगानिस्तान में अपने खुफिया तां को इतना मजबूत करना होगा जिससे कि आईएस की हर गतिविधि पर नजर रखी जा सके. इस खतरे पर भारत का पाकिस्तान से बात करना इसलिए भी तर्कसंगत है क्योंकि दोनों ही इसे झेलने की स्थिति में नहीं हैं.

सरकार को जम्मू कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की गठबंधन सरकार के साथ भी बेहतर तालमेल बनाकर रखना होगा. पीडीपी का कथित रूप से अलगाववादियों के प्रति नरम रुख बताया जाता है जिससे केन्द्र सरकार की आतंकवाद विरोधी नीतियों की धार कुंद हो सकती है.



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment