महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वोटरों ने दलबदलुओं को नकारा

Last Updated 20 Oct 2014 04:56:51 PM IST

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में ऐसे तो भगवा पार्टी ने अपना परचम लहरा दिया लेकिन अपने अपने राजनीतिक फायदे के लिए ऐन चुनाव के मौके पर भाजपा और शिवसेना में शामिल होने वाले कई दलबदलुओं को मुंह की खानी पड़ी.


महाराष्ट्र में भाजपा ने परचम लहराया

विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा से जुड़ने वाले एनसीपी के पूर्व अध्यक्ष बबनराव पचपुटे उत्तर महाराष्ट्र में श्रीगोंडा सीट से हार गए. वोटरों ने वहां एक बार फिर एनसीपी उम्मीदवार पर ही अपना भरोसा जताया.

पूर्व कांग्रेस-एनसीपी सरकार में मंत्री रहे संजय देवताले को कांग्रेस ने टिकट देने से इंकार कर दिया था, जिसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए. पर, वह वरोरा में शिवसेना उम्मीदवार से चुनाव हार गए.

कांग्रेस और एनसीपी में रहे अजित घोरपाड़े भाजपा में शामिल हुए और सांगली जिले की तासगांव सीट से पूर्व गृह मंत्री आर आर पाटिल को हराने का संकल्प लिया.

ऐसा लगा था कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर संजय पाटिल की जीत से घोरपाड़े को मदद मिलेगी. हालांकि, तासगांव के वोटरों ने आरआर पाटिल में ही अपना भरोसा कायम रखा. उन्हें 22,000 से ज्यादा वोटों से जीत हासिल हुई. जिले की राजनीति में संजय को आर आर पाटिल का प्रतिद्वंद्वी माना जाता है.

नंदुरबार जिले के नवापुर विधानसभा क्षेत्र में 2009 में शरद गवित ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. चुनाव के वक्त वह एनसीपी में शामिल हो गए. लेकिन, कांग्रेस नेता सुरूपसिंह नाइक ने गवित के मंसूबे पर पानी फेर दिया.

पहले भाजपा में रहे प्रकाश शेंडगे ने सांगली जिले में जाट निर्वाचन क्षेत्र से राकांपा के टिकट पर किस्मत आजमाने का फैसला किया. यहां भी वोटरों ने शेंडगे पर नहीं बल्कि भाजपा उम्मीदवार को चुना.

सांगली के विधायक संभाजी पवार को इस बार भाजपा ने टिकट देने से इंकार कर दिया जिसके बाद उन्होंने शिवसेना से अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया लेकिन उन्हें शिकस्त ही हाथ लगी.

नारायण राणे के पूर्व सहयोगी और कांग्रेस के पूर्व विधानपार्षद राजन तेली पहले एनसीपी और फिर भाजपा में शामिल हुए. उन्होंने सावंतवाड़ी सीट से चुनाव लड़ा लेकिन शिवसेना के दीपक केसरकर से हार गए. दिलचस्प है कि पहले एनसीपी में रहे केसरकर ने शिवसेना के टिकट पर जीत हासिल की.

महाराष्ट्र कांग्रेस के पूर्व महासचिव बासवराज पाटिल नगरालक एनसीपी में शामिल हो गए और निलंगा से चुनाव लड़ा लेकिन शिवेसना संभाजी निलंगेकर से चुनाव हार गए.

एनसीपी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़कर पूर्व कांग्रेसी नेता वसुधा देशमुख को भी अचलपुर में निर्दलीय उम्मीदवार बच्चू काडू से हार मिली.

बहरहाल, पाला बदलने वाले कुछ ऐसे भी उम्मीदवार हैं जिन्हें जीत मिली.

हिंगना से भाजपा उम्मीदवार समीर मेघे ने एनसीपी उम्मीदवार को 23,000 से ज्यादा वोटों से हराया. इस साल हुए लोकसभा चुनाव के वक्त वह कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में वर्धा सीट से चुनाव लड़े थे. लेकिन तब उन्हें हार मिली थी.

चुनाव के पहले दूसरे दलों में शामिल होने वाले एनसीपी के पूर्व मंत्री उदय सामंत शिवसेना के टिकट पर रत्नागिरि और संजय सवखड़े भाजपा के टिकट पर भुसावल सीट बचाने में कामयाब रहे.

पहले एनसीपी में रहे और पूर्व राज्य सरकार में मंत्री रहे विजय कुमार गवित भाजपा टिकट पर नंदुरबार सीट बचाने में सफल रहे.

इसी तरह एक समय राहुल गांधी टीम का हिस्सा रह चुके प्रशांत ठाकुर ने भाजपा टिकट पर अपनी पनवेल सीट को बचा लिया. पूर्व एनसीपी सदस्य भारती लावहेकर को वसरेवा और मंडा म्हात्रे को बेलापुर से भाजपा टिकट पर जीत मिली.



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