कोलेजियम प्रणाली हटाने का समर्थन

Last Updated 29 Jul 2014 02:42:39 AM IST

कई शीर्ष न्यायविदों ने सोमवार को न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति वाली वर्तमान कोलेजियम प्रणाली को हटाने का समर्थन किया.


नई दिल्ली : न्यायपालिका में सुधारों को लेकर आयोजित सम्मेलन में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एएम अहमदी.

लेकिन न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने के लिए एक विधेयक लाने की सरकार की योजना में अभी थोड़ा वक्त लग सकता है.

अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने साढ़े तीन घंटे तक चले विचार-विमर्श के बाद कहा कि न्यायिक सुधारों पर चर्चा करने के लिए आयोजित बैठक में ‘प्रबल’ नजरिया यह रहा कि कोलेजियम प्रणाली को ‘बदलने’ की जरूरत है. अटार्नी जनरल ने कहा कि बैठक में मौजूद सदस्यों ने इस बात पर अपना नजरिया पेश किया कि कोलेजियम प्रणाली बनी रहनी चाहिए या नहीं, लेकिन यह चर्चा अभी खत्म नहीं हुई है.

उन्होंने कहा कि इस बात पर अब भी चर्चा होनी है कि वर्तमान प्रणाली को कितना बदला जाए और इसकी संरचना क्या होनी चाहिए.  अगले कदम के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि विधि मंत्री इस मुद्दे पर फैसला करेंगे और संभवत: एक बार फिर विचार-विमर्श हो सकता है. विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, ‘न्यायाधीशों की नियुक्ति में सुधार करने और इसे और पारदर्शी बनाने की जरूरत पर आमसहमति थी.’

यह पूछे जाने पर कि क्या कोलेजियम प्रणाली को समाप्त करने पर आमसहमति थी, प्रसाद ने कहा कि इस संबंध में सार्वजनिक बयान देना उनके लिए उचित नहीं होगा. नरेंद्र मोदी सरकार संसद के इसी सत्र में न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक लाने की योजना बना रही है. आज की इस बैठक के एजेंडे में पिछली संप्रग सरकार द्वारा लाए गए न्यायिक मानक एवं जवाबदेही विधेयक सहित न्याय पालिका से जुड़े अन्य सुधार भी शामिल थे, लेकिन इस बैठक में शामिल लोगों ने कहा कि ज्यादातर समय कोलेजियम प्रणाली पर ही चर्चा हुई.

इस बैठक में उपस्थित लगभग सभी सदस्यों का नजरिया था कि कोलेजियम विरोधी माहौल के चलते कार्यपालिका को उच्च न्यायपालिका (उच्चतम न्यायालय और 24 उच्च न्यायालय) में नियुक्ति का नियंतण्रहासिल नहीं करना चाहिए. बैठक में शामिल रहे सदस्यों ने कहा कि मुख्य नजरिया यह था कि प्रस्तावित न्यायिक नियुक्ति आयोग में बहुमत न्यायपालिका का ही रहना चाहिए और सरकार का प्रतिनिधित्व केवल विधि मंत्री द्वारा होना चाहिए.

समझा जा रहा है कि संविधान विशेषज्ञों फली नरीमन और सोली सोराबजी ने कहा कि संविधान के मूल ढांचे में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए. समझा जाता है कि सरकार ने न्यायविदों को आस्त किया कि इन गतिविधियों का उद्देश्य नियुक्ति प्रक्रि या में ज्यादा पारदर्शिता लाने का है ताकि उच्च न्यायपालिका में सर्वश्रेष्ठ न्यायाधीश आएं. प्रस्तावित आयोग की सिफारिशें सरकार पर बाध्यकारी होने जैसे कई मुद्दों पर अब भी गहन चर्चा होनी है.

आज की चर्चा में पूर्व प्रधान न्यायाधीशों एएम अहमदी और वीएन खरे, चर्चित वकील केटीएस तुलसी और केके वेणुगोपाल, विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एपी शाह, सालिसिटर जनरल रंजीत कुमार और दिल्ली विविद्यालय के पूर्व कुलपति उपेन्द्र बक्शी भी शामिल हुए.

विधि मंत्री ने 21 जुलाई को कहा था कि सरकार न्यायाधीशों की वर्तमान नियुक्ति प्रणाली खत्म करने की व्यवस्था वाले न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन पर विभिन्न राजनीतिक दलों और प्रमुख न्यायविदों का नजरिया पूछेगी. कोलेजियम प्रणाली के जरिये न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की व्यवस्था वर्ष 1993 में शुरू हुई थी. उससे पहले सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति होती थी.



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