टेलीविजन और समाचार पत्रों में राजनेताओं को दिखाने पर कोर्ट चिंतित

Last Updated 24 Apr 2014 05:25:39 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने समाचारपत्रों एवं टेलीविजन में विज्ञापन देकर सार्वजनिक फंड का दुरुपयोग रोकने के मकसद से दिशानिर्देश बनाने के लिए एक समिति का गठन किया है.


सरकारी विज्ञापनों का दुरुपयोग रोकने को समिति गठित

उच्चतम न्यायालय ने राजनीतिक लाभ की खातिर सरकार और इसके अधिकारियों द्वारा समाचारपत्रों एवं टेलीविजन में विज्ञापन देकर सार्वजनिक फंड का दुरुपयोग रोकने के मकसद से दिशानिर्देश बनाने के लिए एक समिति का गठन किया है.

मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा कि सार्वजनिक राजकोष की कीमत पर दिए जाने वाले ऐसे विज्ञापनों के नियमन के लिए मौलिक दिशानिर्देशों की आवश्यकता है और इसके लिए चार सदस्यीय एक समिति का गठन किया गया है.

राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल के पूर्व निदेशक एनआर माधव मेनन, पूर्व लोकसभा सचिव टीके विनाथन, वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव इसके सदस्य होंगे. उच्चतम न्यायालय ने समिति को तीन महीने में अपनी रिपोर्ट जमा करने को कहा है.

न्यायालय ने गैर सरकारी संगठनों कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरस्ट लिटिगेशन की जनहित याचिकाओं पर यह आदेश दिया है. इन एनजीओ ने दिशानिर्देश बनाने की अपील की थी.

याचिका में दिशानिर्देश जारी करने की अपील की गई है ताकि सत्तारूढ़ दलों को आधिकारिक विज्ञापनों में अपने नेताओं को दिखाकर राजनीतिक लाभ हासिल करने से रोका जा सके.

इससे पहले कॉमन कॉज के वकील ने कहा था कि सार्वजनिक राजकोष की कीमत पर राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए सत्तारूढ़ दल से जुड़े राजनेताओं का महिमामंडन संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.

सीपीआईएल के वकील ने अदालत को बताया था कि सरकार के कार्यक्र मों के बारे में लोगों को जानकारी देने और इस संबंध में विज्ञापन देने में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन जब ऐसे विज्ञापनों का लक्ष्य राजनीतिक लाभ प्राप्त करना हो जाता है तो ये अनियंत्रित एवं गलत इरादे से प्रेरित हो जाते हैं.



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