राष्ट्रपति ने कोहिमा युद्ध के शहीदों को याद किया

Last Updated 30 Nov 2013 11:50:31 PM IST

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने जापानी बलों से लड़ते हुए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले कोहिमा युद्ध के 2300 शहीदों को याद किया.


कोहिमा युद्ध के शहीदों को श्रृद्धांजलि देते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी

मुखर्जी ने शनिवार को कोहिमा पहुंचने के बाद ‘कोहिमा युद्ध स्मारक’ पर पुष्पांजलि अर्पित की. इस युद्ध में अपनी जान गंवाने वाले कई लोगों का अब तक पता नहीं चला है.

\"\"राष्ट्रपति ने स्मारक के पर्यटक पुस्तिका में लिखा कि कोहिमा युद्ध स्मारक का दौरा कर पाना सम्मान की बात है. यह स्मारक सैकड़ों बहादुर ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों की जंग और शहीद होने की स्थल पर बनाया गया है.

सेना ने अपने 1405 जवान गंवाए थे जिसमें 146 की पहचान नहीं हो सकी जबकि वायु सेना के 15 सैनिक शहीद हुए. इस युद्ध में मारे गए एक अन्य व्यक्ति का पता नहीं चल सका.

अप्रैल 1944 में जापानियों के भारत में घुसपैठ को गैरिसन हिल पर रोका गया और यह जगह संघर्ष का गवाह बनी. इसी हिल पर स्मारक बनाया गया है.

शिक्षा से नैतिक चुनौतियों का सामना किया जा सकेगा : राष्ट्रपति
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि वर्तमान नैतिक चुनौतियों से निपटने के लिए देश के लोगों को अतिरिक्त प्रयास करने की आवश्यकता है. उन्होंने भारत के लिए शिक्षा पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया.

राजीव गांधी विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत सम्मेलन में राष्ट्रपति ने यहां कहा, ‘‘हमारे युवकों में मातृभूमि के लिए प्यार, कर्तव्य का निर्वहन, सभी के प्रति दया, बहुलतावाद, महिलाओं के लिए सम्मान, जीवन में ईमानदारी, धैर्यपूर्ण व्यवहार, अनुशासन जैसे सांस्कृतिक मूल्य पैदा करने में शैक्षणिक संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका है.’’

उन्होंने कहा कि किसी भी समृद्ध समाज के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है और अच्छी शिक्षा विभिन्न विचारों को समाहित करने में उपयोगी है. उन्होंने कहा, ‘‘हमारे देश में अच्छा आर्थिक विकास हुआ है. फिर भी हम दावा नहीं कर सकते कि हम वास्तव में विकसित समाज बन सके हैं.’’
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उन्होंने कहा, ‘‘विकास का मतलब केवल फैक्टरियां, बांध और सड़कें नहीं हैं. मेरे हिसाब से विकास लोगों, उनके मूल्यों और हमारे देश के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत के प्रति उनके समर्पण से है.’’

मुखर्जी ने कहा, ‘‘ऐसे समय में जब हम एक देश के रूप में वर्तमान नैतिक चुनौतियों से पार पाने के लिए अतिरिक्त प्रयास कर रहे हैं, संपूर्ण शिक्षा ही हमारे मूल्यों के लिए निश्चित भूमिका निभा सकती है.’’

पूर्वोत्तर राज्य के दो दिवसीय दौरे पर आए राष्ट्रपति ने देश में उच्च शिक्षा के गिरते स्तर पर चिंता जताई और इसमें आमूल-चूल परिवर्तन लाने का सुझाव दिया.

उन्होंने कहा, ‘‘आज हमारे विश्वविद्यालय दुनिया के बेहतरीन विश्वविद्यालयों की तुलना में पिछड़े हुए हैं. एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के मुताबिक शीर्ष 200 संस्थानों की सूची में कोई भी भारतीय विश्वविद्यालय या संस्थान नहीं है. यह स्तब्धकारी है.’’

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘भारत वि में नंबर एक बनने को तैयार है. केवल संस्थानों के विस्तार मात्र से नहीं बल्कि इसमें गुणवत्तापूर्ण विस्तार होना चाहिए. अच्छे शिक्षकों एवं विद्यार्थियों की कमी नहीं है, हमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और इसके लिए माहौल की जरूरत है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे विद्यार्थियों को विदेश क्यों जाना चाहिए. हम उल्टी स्थिति क्यों नहीं पैदा कर सकते. इसके लिए हमें शिक्षा और शोध पर जोर देने की जरूरत है.’’
     
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश के प्राचीन विश्वविद्यालयों ने केवल एक-दो वर्षों तक बेहतरीन शिक्षा दी बल्कि 1800 वर्षों तक उन्होंने शिक्षा प्रदान की और अब दुनिया के शीर्ष 200 संस्थानों की सूची में हमारे एक भी संस्थान नहीं हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे प्राचीन विश्वविद्यालय तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, वलभी, सोमापुरा और ओदांतापुरी प्रतिष्ठित शिक्षण केंद्र थे जहां विदेशों से भी विद्वान आते थे.’’  मुखर्जी ने कहा कि देश के उच्च शिक्षण संस्थानों की परंपरागत पद्धति में महत्वपूर्ण बदलाव की आवश्यकता है.



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