आरक्षित सीटों की भूमिका अहम

Last Updated 24 Apr 2014 03:49:41 AM IST

अगली केंद्र सरकार के गठन में दलित और आदिवासी वोट बैंक व इनके लिए आरक्षित सीटें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी.


आरक्षित सीटों की भूमिका अहम

अगर कांग्रेस के इस पारंपरिक वोट बैंक व आरक्षित सीटों में भाजपा सेंध लगा लेती है तो उसकी राह आसान हो जाएगी. इसके विपरीत अगर कांग्रेस अपना यह वोट बैंक व आरक्षित सीटें अपने पास सहेज कर रखने में सफल हो जाती है तो उसे राजनीतिक दृष्टि से फायदा होना लाजिमी है.

लोकसभा के लिए निर्वाचित होने वाले सदस्यों की संख्या 543 है. इनमें 84 सीटें अनुसूचित जाति और 47 सीटें अनुसचित जनजाति के लिए सुरक्षित हैं. इस तरह दलित और आदिवासियों के लिए 131 सीटें आरक्षित हैं. पिछले आम चुनाव में आरक्षित सीटों में कांग्रेस को सर्वाधिक 50 संसदीय क्षेत्रों में सफलता मिली थी. इसके बाद भाजपा को 25, मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को आठ, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को दो, तृणमूल कांग्रेस को तीन, बीजू जनता दल को पांच, जनता दल (यूनाइटेड) को चार तथा कुछ सीटें अन्य दलों को मिली थीं. समाज के दबे कुचले व कमजोर वर्ग की राजनीति को अहम मानने वाली बसपा को केवल दो सुरक्षित सीटों तथा समाजवादी पार्टी को 10 स्थानों पर कामयाबी मिली थी. आदिवासियों के लिए जल, जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार केवल दो क्षेत्रों में विजयी हो पाए थे.

अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित 84 सीटों मेंसे कांग्रेस को 30 में जीत मिली थी जबकि भाजपा को 12 और माकपा को छह पर सफलता हाथ लगी थी. बसपा के दो तथा सपा के 10 प्रत्याशियों ने उत्तर प्रदेश में विजय पताका फहरायी थी. कांग्रेस को आंध्र प्रदेश में सबसे अधिक छह सीटों पर जीत मिली थी. इसके अलावा कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब और राजस्थान में तीन-तीन सीटों पर, हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में दो-दो सीटों पर तथा असम, बिहार, केरल, तमिलनाडु, उत्तराखंड एवं दिल्ली में एक-एक सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार निर्वाचित हुए थे.

भाजपा को गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के दो-दो सुरक्षित लोकसभा क्षेत्रों में तथा बिहार, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ के एक-एक क्षेत्र में जीत मिली थी. माकपा को पश्चिम बंगाल में पिछले चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस ने भारी नुकसान पहुंचाया था. फिर भी वह यहां की पांच सुरक्षित सीटों पर कब्जा कर यह बता दिया था कि अनुसूचित जाति पर लाल झंडे का जादू बरकरार है. उसका एक उम्मीदवार केरल में भी जीता था. जनता दल (यू) के अनुसूचित जाति के चार प्रत्याशी बिहार में तथा झारखंड मुक्ति मोर्चा का एक प्रत्याशी झारखंड में विजयी हुआ था.

अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित 47 लोकसभा क्षेत्रों में से 20 पर जीत हासिल कर कांग्रेस सबसे आगे रही थी. भाजपा को 13, तीन पर बीजू जनता दल तथा दो पर माकपा विजयी हुई थी. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को एक,  झामुमो को एक, तेलगू देशम पार्टी को एक तथा आरएसपी को एक सीट पर जीत मिली थी.

पिछले आम चुनाव में कांग्रेस ने श्री मोदी के गृहराज्य गुजरात में अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित चार सीटों में से तीन पर कब्जा कर उन्हें यह जता दिया था कि भोले भाले इस जाति के लोगों का विश्वास वह अब तक नहीं हासिल कर पाए हैं. एक सीट भाजपा को मिली थी. इसी तरह मध्य प्रदेश की छह सीटों में  चार कांग्रेस ने कब्जा किया था. ओडिशा की पांच सुरक्षित सीटों में से तीन पर बीजू जनता दल तथा दो पर कांग्रेस, झारखंड की पांच सुरक्षित सीटों में से तीन पर भाजपा तथा दो पर कांग्रेस और झामुमो को सफलता मिली थी. छत्तीसगढ़ की सभी चार सुरक्षित सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था और यहां कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाई थी.



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