डायन के नाम पर प्रताड़ित हो रहीं महिलाएं

Last Updated 26 Jun 2013 04:08:16 PM IST

डायन के नाम पर महिलाओं को मैले का घोल और पेशाब पिलाया जाना, मार-पीट, बाल काटने और नंगा कर घूमाने की घटना आम बात है.


पीड़ित महिला (फाइल)

सुंदरी देवी ने कोई गलती नहीं की फिर भी उसके सुंदर लंबे काले बालों को काटने के बाद उसे पीट-पीट कर अधमरा कर दिया गया. गांव वालों ने उस पर आरोप लगाया कि वह डायन है.

मामला समस्तीपुर जिले का है. इसी तरह कारो देवी की भी इतनी पिटाई की गई कि वह जान बचाने के लिए स्टेशन की ओर भागी ताकि वह ट्रेन से कहीं और चली जाए.

सुंदरी और कारो ही नहीं, फूलो देवी, मीना देवी, सीता देवी, पार्वती देवी, शांति देवी, रधवा देवी, लालपति देवी और बेदमियां देवी सहित सैकड़ों महिलाओं को डायन के नाम पर प्रताड़ित करने का सिलसिला जारी है.
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महिलाओं को प्रताड़ना से मुक्ति दिलाने के लिए सरकारी स्तर पर किये जा रहे प्रयासों के बीच का सच यह है कि आज भी उन्हें डायन के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा है.

बावजूद ऐसे मामले थाने में दर्ज नहीं किये जा रहे हैं. राज्य के सोलह जिलों की 46 पंचायतों एवं 32 थानों में कराए गए सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि इन स्थानों पर डायन के नाम पर प्रताड़ित करने के 189 मामले सामने आए, लेकिन मात्र 12 मामले थाने में दर्ज किये गए.

177 मामले दर्ज तक नहीं किये गए. यह सर्वेक्षण स्वयं सेवी संस्था बिहार वीमेंस नेटवर्क द्वारा पटना, अरवल, जहानाबाद, गया, नवादा, नालंदा, सारण, खगड़िया, सुपौल, मुंगेर, वैशाली, मधुबनी, समस्तीपुर, सीवान, बेगूसराय और बेतिया जिलों में कराया गया.

सर्वेक्षण के दौरान गया जिले में सर्वाधिक तीस महिलाओं ने साफ तौर पर कहा कि गांव में जब भी कोई व्यक्ति बीमार होता है तो इसके लिए उन्हें दोषी मान कर प्रताड़ित किया जाता है.

सोलह जिलों की छियालीस पंचायतों के 32 थानों में सर्वेक्षण कराया गया. नालंदा जिले में पच्चीस, पटना और नवादा में चौबीस, समस्तीपुर में ग्यारह, खगड़िया में पन्द्रह, बेगूसराय में नौ, सीवान में दो, सारण में दस, मुंगेर में नौ, मधुबनी में सात और वैशाली में एक महिला ने डायन के नाम पर प्रताड़ित किए जाने का कड़वा सच बताया. जबकि उनमें से पटना जिले के बाढ़ में दो, खगड़िया में दो, दानापुर में एक, नवादा में एक, नालंदा में दो, मधुबनी में दो, समस्तीपुर में दो मामले ही थाने में दर्ज किये गए हैं. \"\"

प्रताड़िना की शिकार महिलाओं ने बताया कि यदि गांव में कोई गाय भी बीमारी की वजह से मर जाती है तो इसके लिए उन्हें दोषी माना जाता है.

सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि प्रताड़ना के क्रम में इन महिलाओं को मैले का घोल और पेशाब पिलाने तथा बाल काटने से लेकर पीटा भी जाता है.

यहां तक कि कई महिलाओं की संपत्ति हड़प कर उन्हें गांव से बाहर निकल जाने को विवश कर दिया जाता है. सर्वेक्षण टीम में शामिल नीलू, उर्मिला कर्ण, मीना कुमारी, बिंदु देवी, प्रीति, माया और रेणु भी शामिल थीं.

सर्वेक्षण में सबसे चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि प्रताड़ना की शिकार महिलाएं थाने में मामला दर्ज कराने जाती हैं, लेकिन उनका मामला दर्ज नहीं किया जाता है. यहां तक कि कई थाना प्रभारियों को भी डायन प्रथा निषेध अधिनियम की जानकारी नहीं होती.

स्थिति के मद्देनजर, संस्था ने डायन प्रथा निषेध अधिनियम 1999 के व्यापक प्रचार-प्रसार की जरूरत बताई है.



 



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