बढ़ते शिशु के आहार को न करें नजरअंदाज
अगर छह महीने के बाद शिशु को सम्पूरक आहार देने में देरी की जाए तो बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है.
बच्चा (फाइल) |
अगर छह महीने के बाद शिशु को सम्पूरक आहार देने में देरी की जाए तो बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है और बच्चे के शरीर में पोषण-संबंधी कमी आ सकती है.
महिला के जीवन में बच्चे को जन्म देना सबसे ज्यादा खुशी के पलों में से एक है. किसी व्यक्ति ने तो यहां तक कहा है कि \'संतान को जन्म देना किसी भी महिला के जीवन में अध्यात्म की गंभीर शुरुआत होती है. पहले दिन से ही शिशु और मां एक अटूट बंधन में बंध जाते हैं, जो स्तनपान द्वारा और अधिक मजबूत होता जाता है.
स्तनपान से बच्चों को मिलती है संतुष्टि
मशहूर ब्रिटिश प्रसूति विशेषज्ञ ग्रैंटली डिक-रीड ने कहा है कि नवजात शिशु की केवल तीन मांगें होती हैं. वह अपनी मां की बाजुओं की गर्माहट चाहता है, उसके स्तनों से अपना आहार चाहता है और उसकी उपस्थिति में अपनी सुरक्षा का भान चाहता है. स्तनपान तीनों की संतुष्टि करता है.
हालांकि, एक ऐसा समय आता है जब मां का दूध बढ़ते शिशु की पोषण-संबंधी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए पर्याप्त नहीं होता. छह माह की आयु से शिशु की अच्छी सेहत, बढ़त और विकास के लिए ऊर्जा के अतिरिक्त स्रोत और अन्य आवश्यक पुष्टिकर जरूरी हैं.
जब बच्चा छह महीने का हो जाए तब मां के दूध के साथ अर्ध ठोस एवं ठोस खाद्य पदार्थ भी जरूरी हो जाते हैं, इसे \'कॉम्प्लीमेंट्री फीडिंग\' कहते हैं. यद्यपि डॉक्टरों का परामर्श है कि अनुपूरक आहार न तो बहुत जल्दी शुरू करना चाहिए और न ही इसमें देरी करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने पर बाद में सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. पो
पोषण की जरूरत
फोर्टिस हॉस्पिटल्स के बाल रोग विभाग के निदेशक और विभागाध्यक्ष डॉ. राहुल नागपाल के अनुसार छह महीने से लेकर 18-24 महीने का वक्त किसी भी बच्चे के लिए अतिसंवेदनशील समय होता है. इंसान के शरीर का सबसे तीव्र विकास शिशुवस्था में होता है और शारीरिक वजन की प्रति इकाई के आधार पर पोषण की जरूरत उच्चतम स्तर पर होती है.
यही वह वक्त है जब कई बच्चों में कुपोषण की शुरुआत होने लगती है. केवल छह महीने की उम्र में ही बच्चे की पाचन प्रणाली इस काबिल हो पाती है कि वह अर्ध ठोस और ठोस आहार को पचा पाए.
4 से 6 माह के दौरान उसके पेट और गुर्दे का परिपक्व हो जाता है, जिससे मां के दूध के अलावा अन्य आहार को प्रोसेस करने में उसे मदद मिलती है और इस कार्य को सुरक्षित तरीके से करने के लिए इस उम्र तक उसके मोटर स्किल्स भी विकसित हो जाते हैं.
ठोस आहार वक्त से पहले न दें
इसीलिए चिकित्सा विशेषज्ञों का सर्वसम्मति से यह मानना है कि छह महीने की आयु से बच्चे को सम्पूरक आहार देना शुरू करना चाहिए. ठोस आहार वक्त से पहले खिलाने पर मोटापे, मधुमेह, उदर रोग, एलर्जी तथा अन्य विकृतियों (जैसे बचपन के बाद के वर्षों में खाज) का जोखिम बढ़ जाता है. किंतु माताओं में जानकारी की कमी के चलते समय से पहले ठोस आहार देने का चलन जारी है.
वास्तव में, 4 से 5 महीने के 30 प्रतिशत शिशुओं को अनुपूरक आहार दिया जाता है, जबकि चिकित्सकीय सलाह इसके विपरीत है. इसी तरह, अगर छह महीने के बाद सम्पूरक आहार देने में देरी की जाए तो बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है.
केवल मां का दूध पर्याप्त नहीं
बच्चे के शरीर में पोषण-संबंधी कमी आ सकती है क्योंकि अब केवल मां का दूध उसकी सभी पोषण आवश्यकताओं पूरा करने में सक्षम नहीं होता. सम्पूरक आहार की अवधि हेतु पोषण-संबंधी सलाह, इस कॉन्सेप्ट पर आधारित है कि मां के दूध से 6 महीने के शिशु की ऊर्जा, प्रोटीन और माइक्रोन्यूट्रीएंट्स संबंधी जरूरतें पूरी नहीं होतीं.
इस उम्र के बाद भी जिन बच्चों को केवल मां के दूध पर ही पोषित किया जाता है उनमें पोषण की कमी रह जाती है और पेचिश व निमोनिया जैसे रोके जा सकने वाले रोगों के खिलाफ प्रतिरक्षा कम हो जाती है. \'इनफेंट एंड यंग चाइल्ड फीडिंग\'
गाइडलाइंस के मुताबिक, भारत में यह गंभीर मामला है, यहां 40 प्रतिशत बच्चों को 8 महीने की उम्र तक आहार का सम्पूरक स्रोत उपलब्ध नहीं हो पाता. 11वीं पंचवर्षीय योजना के तहत स्वास्थ्य के साथ पोषण को एकीकृत करने के लिए बनाए गए कार्य समूह के अनुसार, हमारे देश में 6 माह की उम्र के लगभग 12 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, किंतु 12 से 23 महीने के बच्चों के मामले में यह आंकड़ा 58.5 प्रतिशत है, जो कि विचलित करने वाला है.
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