हैरान कर देती है कौवे की बुद्धि

Last Updated 05 Jul 2012 05:59:58 PM IST

वे लोगों की नजर में अछूत हैं पर इतने चतुर-चालाक कि चेहरा देखकर ही जान लेते हैं कि कौन खुराफाती है और कौन दोस्त हो सकता है.


वे लोगों की नजर में अछूत हैं पर इतने चतुर-चालाक कि चेहरा देखकर ही जान लेते हैं कि कौन खुराफाती है और कौन दोस्त हो सकता है.

कौवे अपनी चतुराई दिखाने में वे लाजवाब होते हैं. वैज्ञानिक इनको उम्दा चतुर पक्षियों में इसलिए गिनते हैं, क्योंकि इन्होंने ऐसे तमाम इम्तिहान पास किये हैं, जिनमें दूसरे पक्षी फेल हैं. इस्रइली कौवों की कुछ प्रजातियों को तो इतना प्रशिक्षित कर लिया जाता है कि वे मछलियां पकड़ने के लिए ब्रेड के टुकड़ों को सही जगह ले जाने का काम निपटा देते हैं
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चतुर चंचल कौवा

 

जिनको अब तक अछूत कहकर दुत्कारा जाता था, उन्हीं कौवों के बारे में वैज्ञानिक बता रहे हैं कि वे चेहरा देखकर ही जान लेते हैं कि कौन खुराफाती है और कौन दोस्त हो सकता है. यह खूबी तो अभी आदमी में भी नहीं मिली है. वह कितने ही दावे कर ले पर चेहरा देखकर पहचान पाना और अच्छे-बुरे में भेद करना आदमी को भी नहीं आता. अमरीकी यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के शोधकर्ताओं का कहना है कि वे खुद के लिए खतरा पैदा करने वाले चेहरे को पांच साल तक याद रख सकते हैं.

अब तक तो यह बात नागिन के लिए पारंपरिक तौर पर प्रचलित रही है कि उसकी आंखों में अपने दुश्मन की तस्वीर छप जाती है. तेज-तर्रार दिखने वाला कौवा वैज्ञानिकों द्वारा चतुर पहले ही बताया जा चुका है.

अपने यहां चतुर कौवे को लेकर लोक कथा प्रचलित है, जिसमें प्यासा कौवा गहरे बर्तन की तली से पानी को ऊपर लाने के लिए कंकड़ डालता है. यह मैनेजमेंट का फंडा आज के चतुर-सुजानों के लिए हो सकता है पर सधी हुई साधारण भाषा में कौवे का यह गुणगान अद्भुत है.


भारतीय समाज में कौवा अछूत

 वह भी अपने समाज में जहां कौवों को पक्षियों में अछूत का दर्जा दिया गया है. विशेषज्ञ बताते हैं कि कौवों का दिमाग लगभग उसी तरीके से काम करता है, जैसे चिम्पैन्जी और मानव का.

नॉर्थ अमरीका, अफ्रीका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया से लेकर एशिया तक ये खूब नजर आते हैं. कौवा परिवार की 40 से ज्यादा प्रजातियां होने के कारण, थोड़े बहुत फर्क के साथ ये दिखते हैं. बताते हैं, समय के साथ काले कौवों ने ऑस्ट्रेलिया लगभग छोड़ दिया क्योंकि इनको एशिया ज्यादा पसंद आने लगा था. इनमें से जो ऑस्ट्रेलिया लौटे भी, वे नयी प्रजाति के रूप में लौटे, जिनको उप-जाति कहा गया.

कुछ लोग अपने यहां नियमित रूप से कौवों को छतों पर न्योतते हैं और उनके लिए बासी रोटी के टुकड़ों और पॉपकार्न तक का इंतजाम करते हैं.

 

 

 

अपने यहां आज भी धार्मिक कर्म-कांडों के दौरान कौवे को भोजन का निमंत्रण देकर उनके हिस्से का भोजन छत पर रखा जाता है. खासकर श्राद्ध के दौरान पुरोहितों को खिलाने से पहले ही कुत्ते और गाय के अतिरिक्त कौवों का भी भोज होता है.

 

  कौवे संदेश-वाहक

 

 पूर्वी एशिया में कौवों को किस्मत से जोड़ा जाता है तो अपने यहां मुंडेर पर बैठकर कांव-कांव करने वाले कौवे को संदेश-वाहक भी माना जाता है. कुछ कौवे कमजोर पड़वों को ताजा मांस खाने के लोभ में मार तक देते हैं. भूरे गले वाले कौवे फसलें तबाह करने में नंबर वन होते हैं.

आइरिश कौवों को युद्ध और मृत्यु की देवी से जोड़ते हैं. ऑस्ट्रेलियाई इनको संस्कृति नायक के तौर पर देखते हैं. अपने यहां कौवे का सिर पर बैठना बुरा माना जाता है और इसको टोने के रूप में प्रचारित किया जाता है. योग वशिष्ठ में काक भुसुंडी की चर्चा है, रामायण में भी सीता माता के पांव पर कौवे के चोंच मारने का प्रसंग है.

 

कौवे की भाषा पर खोज

इसी तरह विभिन्न संस्कृतियों में कौवे की अद्भुत चर्चा है. कौवों की कांव-काव को समझने में वैज्ञानिक गंभीरता से लगे हुए हैं, क्योंकि यह उनके लिए विवाद का विषय रहा है. कौवे अकसर दूसरी प्रजाति के पक्षियों के संवाद को भी पहचान कर जवाब देते देखे जाते हैं, इसलिए इसको समझने की कोशिशें लगातार हो रही हैं. हालांकि यह बहुत उलझावपूर्ण और मुश्किलों से समझने वाली बोली है.

कांव-कांव की धुन, तीर्वता, संख्या और उतार-चढाव से इसको समझने की कोशिशें जारी हैं. कौवों के बारे में बताते हैं कि वे उन धीमी आवाजों को भी आसानी से सुन लेते हैं, जिनको मानव बिल्कुल नहीं सुन सकता. जोर से निकलने वाले कांव-कांव को भूख का संकेत माना गया है, अपनी टेरेटरी का भाव जताने के लिए भी यही बोली प्रयोग की जाती है. कोमल, गिलगिलाते स्वर का मतलब है कि वे लाड़ करने के अंदाज में हैं. 


 कमाल की बुद्धि और याददाश्त

 

 

  अपनी याददाश्त के बल पर ये अपने लिए सुरक्षित रखे गए भोजन के बारे में भी याद रखते हैं, जिसको भूख लगने पर प्रयोग कर लेते हैं. अभी कुछ समय पहले ही नयी प्रजाति खोजी गई है, जो रोजमर्रा की जरूरत के अनुसार अपने औजारों को भी प्रयोग करती रहती है. ये खाना प्राप्त करने के लिए सूखी डंडी या पत्ती को चोंच के सहयोग से किसी चतुर की तरह इस्तेमाल करते हैं.

यह भी देखा गया कि ये जोर से बंद नट्स को सड़क पर गिराकर किसी वाहन द्वारा उनको कुचल कर खोल दिए जाने का इंतजार भी करते हैं. ऑक्सफोर्ड विविद्यालय ने 2007 के अपने अध्ययन का नतीजा दिया था, जो न्यूकैलोडियन कौवों पर नन्हे कैमरे लगाकर पाए गए थे.

 

 

पाया गया कि वे बहुत सी नयी चीजों को भी अपनी जरूरत पर औजार बना लेते हैं. खोदने, भुरभुरा या मुलायम करने, मोड़ने या कुछ मिलाकर नयी तरह का खाद्य तैयार करने में महारथी होते हैं. ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में ऐसे कौवों की प्रजाति भी मिली जो कैन को खोलकर ड्रिंक पी सकते हैं.



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