सुरक्षा परिषद की सदस्यता पर यथास्थिति बनाए रखना विकल्प नहीं
भारत ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता पर यथास्थिति बनाए रखना निश्चित तौर पर विकल्प नहीं है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (फाइल) |
भारत ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में 136 विकासशील देशों का नेतृत्व महज एक स्थायी सदस्य करे इसका समर्थन नहीं किया जा सकता.
भारत के राजदूत अशोक मुखर्जी ने गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) सुधारों पर कहा कि परिषद के प्रतिनिधित्व में इजाफा, उसे प्रभावी करने और अधिक लोकतांत्रिक बनाने के लिए इसे ‘‘अविलंब’’ विस्तार दिए जाने की जरूरत है.
अशोक मुखर्जी ने कहा, ‘‘जहां तक परिषद की सदस्यता को लेकर यथास्थिति बनाए रखने की बात है तो यह निश्चित तौर पर विकल्प नहीं है. इस बात का समर्थन नहीं किया जा सकता कि संयुक्त राष्ट्र के 137 विकासशील सदस्य देशों में से अब तक महज एक देश को ही परिषद के स्थायी सदस्य देश के तौर पर शामिल किया गया है.’’
इस दौरान अंतरसरकारीय वार्ता के अध्यक्ष कर्टनी रैटरी ने सदस्यता की विभिन्न स्थितियों को दर्शाने के लिए तैयार एक दस्तावेज पेश किया जिसका मकसद अंतरसरकारीय वार्ताओं को मसौदा आधारित वार्ता की ओर ले जाना है.
बहरहाल, यह मालूम हुआ है कि प्रस्तावित खाके को खारिज कर यूएनएससी सुधारों की राह में चीन ने यह कहते हुए बाधा पहुंचाने में अगुवाई की कि अध्यक्ष को मसौदा पेश करने का अधिकार नहीं है.
उधर सुधार समर्थक समूहों जैसे कि एल-69, कैरेबियाई देशों के कैरिकॉम ब्लॉक, छोटे द्वीपीय विकासशील देशों, जी 4 और अफ्रीका ने अध्यक्ष के प्रस्ताव का समर्थन किया वहीं चीन, पाकिस्तान और ‘सर्वानुमति बनाने के लिए एकीकृत देशों के समूह’ ने इसे खारिज किया.
सुरक्षा परिषद के स्थायी पांच देशों में से अमेरिका और ब्रिटेन को अध्यक्ष के साथ काम करने का समर्थन करते देखा गया है. बहरहाल, अमेरिका और रूस ने कहा है कि सुधार प्रक्रियाओं में परिणाम हासिल करने के लिए कोई तय समय सीमा नहीं होनी चाहिए.
भारत का मानना है कि अध्यक्ष की ओर से पेश मसौदा दस्तावेज एक सकारात्मक पहल है. उल्लेखनीय है कि विश्व के नेताओं ने 2005 में संयुक्त राष्ट्र की 60 वीं वषर्गांठ पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन में सुरक्षा परिषद में ‘‘जल्द सुधारों’’ को हासिल करने पर सर्वसम्मति से रजामंदी जताई थी.
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