कश्मीर की धुन छोड़ देनी चाहिए पाकिस्तान को: पूर्व पाक राजनयिक

Last Updated 03 Mar 2015 09:50:43 PM IST

पाकिस्तान के एक पूर्व शीर्ष राजनयिक ने कहा कि पाक को कश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन अब और प्राप्त नहीं है और उसे इस मुद्दे के साथ अपनी वैचारिक धुन छोड़ देना चाहिए.


पाकिस्तान के एक पूर्व राजनयिक हुसैन हक्कानी (फाइल)

साल 2008 से 2011 के बीच अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक्कानी ने कश्मीर के प्रति पाक के रवैये में निर्णायक बदलाव की जरूरत बताते हुए कहा कि 26-11 के मुंबई आतंकवादी हमले के आरोपी जकीउर रहमान लखवी और जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद से जुड़े मुद्दे शांति में अवरोधक साबित हो सकते हैं.

पाकिस्तान में असैन्य सरकार पर सेना के नियंत्रण के मुखर आलोचक रहे हक्कानी ने भारत-पाक रिश्ते को ‘अशुभ शादी’ के रूप में परिभाषित करते हुए इस बात पर जोर दिया कि कश्मीर मुद्दे को लेकर अब पाकिस्तान के रवैये में निर्णायक बदलाव का वक्त है.

हक्कानी ने कहा, ‘‘पाकिस्तान को इस तरह का रवैया रखना है जिस तरह का चीन ने ताइवान को लेकर रखा है. उसे अपना दावा छोड़ने की जरूरत नहीं लेकिन अन्य मुद्दों पर पहले आगे बढ़ने की भी जरूरत नहीं है.’’
   
उन्होंने कहा कि कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन अब और हासिल नहीं है.
   
उन्होंने कहा, ‘‘हमें इसे वैचारिक धुन बना लेने की बजाय और अधिक व्यावहारिक सोच अख्तियार करनी होगी.’’
   
इस्लामाबाद में मंगलवार को भारतीय विदेश सचिव एस जयशंकर की पाकिस्तानी विदेश सचिव ऐजाज चौधरी से मुलाकात से एक दिन पहले सोमवार को लंदन के रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स में एक कार्यक्रम में हक्कानी ने कहा, ‘‘अच्छी बात है कि भारत और पाकिस्तान बातचीत फिर शुरू कर रहे हैं. लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि रिश्तों के बुनियादी बिंदुओं पर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया है.’’
   
फिलहाल वाशिंगटन स्थित हडसन इंस्टीट्यूट में वरिष्ठ फेलो तथा दक्षिण एवं मध्य एशिया के निदेशक हक्कानी ने कहा, ‘‘शुरूआती मेलमिलाप के बाद भारतीय जानना चाहेंगे कि लखवी पर मुकदमे में क्या हो रहा है, हाफिज सईद के साथ क्या हो रहा है, लश्कर-ए-तैयबा अब भी जमात-उद-दावा को खुलेआम क्यों चला रहा है.’’
   
जब उनसे पूछा गया कि यह गतिरोध कैसे तोड़ा जा सकता है तो उन्होंने कहा, ‘‘पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय का हिस्सा है जिसने माना है कि आतंकवाद स्वीकार्य नहीं है. इसलिए कई पहलू हैं जहां जिम्मेदारी तय की जा सकती है.’’
   
हक्कानी के अमेरिका में पाकिस्तानी राजदूत रहने के दौरान ही अल-कायदा के प्रमुख ओसामा बिन-लादेन को मारा गया था. उनका मानना है कि इस घटनाक्रम का देश की छवि पर दीर्घकालिक असर पड़ा है.
   
उन्होंने कहा, ‘‘जब बिन-लादेन को पाकिस्तान में मार गिराया गया था, तब मैं अमेरिका में राजदूत था. मैं सोचता हूं कि हमें दुनिया को यह सफाई देने की जरूरत है कि वह वहां क्यों था.’’
   
भारत को ‘एक काल्पनिक खतरा’ बताते हुए हक्कानी ने कहा, ‘‘भारत के साथ समानता हासिल नहीं हो पाने की वजह है क्योंकि सीधी सी बात है कि आकार के मायने होते हैं. भारत की अर्थव्यवस्था 10 गुना ज्यादा है. पाकिस्तान को एक तरह की मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक असुरक्षा ने पीछे कर दिया है. बेहतर रणनीति होगी कि अपने अंदर ध्यान दिया जाए.’’




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