सईदी की मौत की सजा आजीवन कारावास में तब्दील

Last Updated 17 Sep 2014 04:35:37 PM IST

बंगलादेश के सुप्रीम कोर्ट ने जमात ए इस्लामी पार्टी के नेता दिलावर हुसैन सईदी की मौत की सजा कम करके आजीवन कारावास में तब्दील कर दी.


जमात ए इस्लामी पार्टी के नेता दिलावर हुसैन सईदी (फाइल)

शीर्ष अदालत ने 1971 के युद्ध अपराधी और कट्टरपंथी जमाते इस्लामी नेता दिलवार हुसैन सईदी की मृत्युदंड की सजा को यह कहते हुए आजीवन कारावास में बदल दिया कि उसे अब ‘मौत तक’ जेल में रहना होगा.
    
प्रधान न्यायाधीश एम मुजम्मील हुसैन ने खचाखच भरी अदालत में हैरान करने वाला फैसला सुनाया कि उन्हें मौत तक जेल में रहना होगा.

हुसैन की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय पीठ ने बहुमत (मेजरिटी व्यू) से फैसले की घोषणा की लेकिन यह नहीं बताया कि कितने न्यायाधीशों की सईदी की सजा पर अलग राय थी. पिछले साल फरवरी में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने उन्हें मौत की सजा सुनायी थी.
    
न्यायाधिकरण के फैसले से देश के इतिहास में घातक राजनीतिक हिंसा फैल गयी थी. जमात के शीर्ष नेता ने 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति का विरोध करते हुए पाकिस्तानी जुंटा का साथ देते हुए अल बद्र अल शम्स जैसे मिलिशिया गुट की शुरूआत की थी.

न्यायाधिकरण ने सईदी को छह प्रमुख आरोपों का गुनाहगार माना, जबकि शीर्ष अदालत ने हत्याएं, बलात्कार और कई हिंदुओं को जबरन इस्लाम कबूलवाने के तीन आरोपों को सही माना लेकिन नरसंहार के आरोपों से मुक्त कर दिया.
    
त्वरित प्रतिक्रिया में अटार्नी जनरल महबुबे आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की अपीली पीठ का फैसला उनके लिए ‘निराशाजनक’ है क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि शीर्ष अदालत न्यायाधिकरण के फैसले को बरकरार रखेगी.

आलम ने कहा कि मेरी उम्मीद थी कि उनका मृत्युदंड बरकरार रहेगा, यह पूरा नहीं हो सका, इसलिए बुरा लग रहा है.

उन्होंने कहा कि अब वह व्यापक विश्लेषण के लिए पूरे फैसले का इंतजार कर रहे हैं.

आलम ने कहा कि फैसले ने सईदी की छवि को उजागर कर दिया है. उन्होंने कहा कि इस्लाम कभी भी जबरन धर्म परिवर्तन कर इस्लाम अपनाए जाने की अनुमति नहीं देता जैसा कि उन्होंने (सईदी) 1971 में किया.

इस्लामी नेता के एक बेटे ने कहा कि वे इंसाफ से महरूम रह गए क्योंकि शीर्ष अदालत को मेरे पिता को बरी कर देना चाहिए था और हम चाहेंगे कि इसकी समीक्षा हो. लेकिन, आलम ने कहा कि युद्ध अपराध दोषियों के मामले में इस तरह के पुनर्विचार की कोई जगह नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनजर कहीं हिंसा नहीं भड़क उठे, इसलिए प्रशासन ने इससे पहले राजधानी और अन्य शहरों की रक्षा के लिए अर्धसैनिक बलों को बुला लिया था.

पिछले साल सईदी को मौत की सजा सुनाए जाने के बाद देश के विभिन्न शहरों में जमात कार्यकर्ताओं की हिंसा में पुलिसकर्मियों सहित करीब 100 लोगों की मौत हो गयी थी.

इससे पहले बचाव पक्ष के मुख्य वकील खोंडकर महबुबुद्दीन ने दावा किया कि उन्होंने उल्लेख किया कि एक गलत आदमी पर मुकदमा चलाया गया और उसे मौत की सजा सुनायी गयी. उन्होंने कहा कि सईदी नाम के एक अन्य व्यक्ति ने 1971 के मुक्ति संग्राम में अत्याचार किया था.



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