यह उदाहरण कोई अपवाद नहीं। ‘एल्गी’ जाति के ‘प्रोटोंकोकस’ पोधे और फंगस जाति के एक्टीनो माइसिटीज’ पौधे भी आपस में मिलकर एक दूसरे को बहुत सुन्दर ढंग से पोषण की वस्तुएं प्रदान करते है। ....
मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप को समझ लेता है, उसका संबंध परमात्म तत्त्व से स्पष्ट और प्रकट हो जाता है, जिसकी अभिव्यक्ति उच्च शक्तियों के रूप में होकर संसार को प्रभावित करने लगती है और लोग उस व्यक्ति को अवतार, ऋषि, ....
जीवन एक बड़ी संपदा है, लेकिन आदमी सिवाय उसे फेंकने और गंवाने के कुछ भी नहीं करता है! जीवन क्या है, यह भी पता नहीं चल पाता और हम उसे फेंक देते हैं! ....
दुनिया में हमें केवल संपत्ति नहीं बनानी है, बल्कि खुशहाली बनानी है। धन-दौलत मनुष्य की खुशहाली के कई साधनों में केवल एक साधन है, लेकिन मात्र यही सब कुछ नहीं है। ....
सेवा ऐसा कार्य है जो लगता तो सामान्य, छोटा और कुछ लोगों की दृष्टि से ओछा भी पर वस्तुत: सही मायने में व्यक्तियों के व्यक्तित्व को सुगढ़ बनाने, परिमार्जित करने और तप तितिक्षा के लिए तैयार करने में आधार का काम करता ह ....