युवा
सभी युवक, युवक नहीं होते। सभी बूढ़े, बूढ़े नहीं होते। जिसे युवक होने की कला आती है, वह बूढ़ा होकर भी युवक होता है, और जिसे युवक होने की कला नहीं आती, वह युवक होकर भी बूढ़ा ही होता है।
आचार्य रजनीश ओशो |
पहली तो बात, युवक हैं कहां? इस देश में तो नहीं हैं। इस देश में तो बच्चे बूढ़े ही पैदा होते हैं; गायत्री मंत्र पढ़ते हुए ही पैदा होते हैं। कोई गीता का पाठ करते चले आ रहे हैं! कोई राम-नाम जपते चले आ रहे हैं! कोई राम-नाम जपते चले आ रहे हैं! इस देश में युवक हैं कहां? शक्ल-सूरत से भला युवक मालूम पड़ते हों, मगर युवक होना शक्ल-सूरत की बात नहीं। युवक होना उम्र की बात नहीं। युवक होना एक बड़ी और ही, बड़ी अनूठी अनुभूति है-एक आध्यात्मिक प्रतीत है! तो पहले तो इस सत्य को समझने की कोशिश करो कि युवा होना क्या है! तुम्हारी उम्र पच्चीस साल है, इसलिए तुम युवा हो, इस भ्रांति में मत पड़ना। उम्र से क्या वास्ता? पच्चीस साल के भला होओ, लेकिन तुम्हारी धारणाएं क्या है? तुम्हारी धारणाएं तो इतनी पिटी-पिटाई हैं, इतनी मुर्दा हैं, इतनी सड़ी-गली हैं, इतनी सदियों से तुम्हारे ऊपर लदी हैं-तुम्हें उन्हें उतारने का भी साहस नहीं है।
तुम जंजीरों को आभूषण समझते हो। और तुम, जो बीत चुका, अतीत, उसमें जीते हो। और फिर भी अपने को युवा मानते हो? युवा हो-और पूजते हो जो मर गया उसको! जो बीत गया उसको! जो जा चुका उसको! तुम्हारी धारणाओं का जो स्वर्ण-युग था वह अतीत में था, तो तुम युवा नहीं हो। राम-राज्य, सतयुग सब बीत चुके। वहीं तुम्हारी श्रद्धा है, लेकिन न तुम विचार करते हो, न तुम श्रद्धा के कभी भीतर प्रवेश करते हो कि श्रद्धा है भी, या सिर्फ थोथा एक आवरण है? पक्षी तो कभी का उड़ गया, पिंजरा पड़ा है। तुम कुछ भी मानते चले जाते हो! इतने अंधेपन में युवा नहीं हो सकते। जैसे उदाहरण के लिए, कोई ईसाई कहे कि मैं युवा हूं और फिर भी मानता हो कि जीसस का जन्म कुंवारी मरियम से हुआ था, तो मैं उसे युवा नहीं कह सकता। ऐसी मूढ़तापूर्ण बात, कुंवारी मरियम से कैसे जीसस का जन्म हो सकता है? अगर तुम मान सकते हो, तो तुम अंधे आदमी हो, तुम्हारे पास विवेक ही नहीं है, उसके पास श्रद्धा क्या खाक होगी! जिसके पास संदेह की क्षमता नहीं है, उसके पास श्रद्धा की भी संभावना नहीं होती।
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