जुड़ाव

Last Updated 29 Jul 2020 12:41:45 AM IST

अगर तार्किक रूप से देखा जाए तो किसी चीज से अपनी पहचान न बनाने का मतलब है कि आपके और आपके काम बीच एक दूरी है।


सद्गुरु

लेकिन पहचान नहीं बनाने का मतलब उसके साथ जुड़ाव न रखना नहीं है। दरअसल, जब आप कोई पहचान नहीं रखते तो आप सजग रूप से खुद को जोड़ सकते हैं। अगर आप अपने जीवन की हर स्थिति में खुद को झोंक नहीं देते, तो इसकी सिर्फ  एक वजह है कि आपने अपनी पहचान बहुत गहरी बना रखी है। आप अपने स्वार्थ की वजह से खुद को पूरी तरह से समर्पित नहीं कर सकते हैं, लेकिन जब आप चीजों से अपनी पहचान नहीं बनाते तो फिर आप पूरी तरह से किसी चीज से जुड़ सकते हैं, लेकिन जब आप चीजों से पहचान बनाते हैं, और फिर किसी चीज से जुड़ना चाहें तो हर बार आपका जुड़ाव आपसे सवाल करता है कि आप जो हैं, उसका क्या होगा?

जब चीजें वैसे नहीं होतीं, जैसा आप सोचते हैं तो आपकी पहचान खतरे में आ जाती है और तब वह स्थिति आपके लिए बेहद असुरक्षित व डरावनी हो उठती है। आप खुद को जीवन के साथ सचमुच तभी जोड़ पाएंगे, जब आप इससे अपनी पहचान स्थापित नहीं करेंगे। मान लीजिए मेरे किसी रिश्तेदार के साथ कुछ गलत हो गया। ऐसे में हो सकता है कि मुझे वहां जाना पड़े और उनकी कुछ मदद करनी पड़े, लेकिन अगर मैं उस स्थिति से प्रभावित नहीं होता हूं तो क्या आपको लगता है कि मैं वहां जाकर वह सब कर पाऊंगा, जिसकी वहां जरूरत होगी? मान लीजिए आपके प्रियजन के साथ कुछ घटित हुआ और आपने उनके साथ अपनी पहचान बनाकर नहीं रखी है, तब भी आप अपनी तरफ से हर चीज अपनी पूरी क्षमता के साथ करेंगे।

क्योंकि आपकी पहचान स्थापित न होने का मतलब यह नहीं है कि आप का प्रेम, आपका लगाव सबकुछ चला गया, लेकिन अगर आपने अपनी पहचान बनाई होगी, तो आप शायद सो नहीं पाएंगे, खा नहीं पाएंगे। अब आप ही बताइए कि अगर आपके सामने ऐसी स्थिति आए कि आपके आसपास किसी के साथ कुछ गलत घटित हो जाए और उस समय उन्हें आपकी जरूरत हो, तो वहां होने का सबसे अच्छा तरीका कौन सा होगा? वहां अपने होशोहवास व संतुलन को पूरी तरह से बनाए रखते हुए मौजूद होना या फिर अपना संतुलन खोकर वहां रहना-दोनों में से बेहतर क्या होगा?



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