चित्त
मन का अगला आयाम चित्त कहलाता है। चित्त का मतलब हुआ विशुद्ध प्रज्ञा व चेतना, जो स्मृतियों से पूरी तरह से बेदाग हो।
जग्गी वासुदेव |
हम लोग जिसे चेतना कह रहे हैं, वो वह आयाम है, जो न तो भौतिक है और न ही विद्युतीय और न ही यह विद्युत चुंबकीय है। यह भौतिक आयाम से अभौतिक आयाम की ओर एक बहुत बड़ा परिवर्तन है। यह अभौतिक ही है, जिसकी गोद में भौतिक घटित हो रहा है। भौतिक तो एक छोटी सी घटना है।
इस पूरे ब्रह्माण्ड का मुश्किल से दो प्रतिशत या शायद एक प्रतिशत हिस्सा ही भौतिक है, बाकी सब अभौतिक ही है। योगिक शब्दावली में इस अभौतिक को हम खास तरह की ध्वनि से जोड़ते हैं। हालांकि आज के दौर में यह समझ बहुत बुरी तरह से विकृत हो चुकी है, इस ध्वनि को हम ‘शि-व’ कहते हैं। शिव का मतलब है, ‘जो है नहीं’। जब हम शिव कहते हैं, तो हमारा आशय पर्वत पर बैठे किसी इंसान से नहीं होता।
हम ऐसे आयाम की बात कर रहे होते हैं, जो है नहीं, लेकिन इसी ‘नहीं होने’ के अभौतिक आयाम की गोद में ही हरेक चीज घटित हो रही है। तो यह हमारे भीतर मौजूद इन्टेलिजेंस व प्रज्ञा का आयाम है, जो एक तरीके से हमारे निर्माण का आधार है। योगिक संस्कृति में बेहद शरारती ढंग से कहा गया है, ‘अगर आप अपने चित्त को छू लेंगे, अपनी इन्टेलिजेंस के उस आयाम तक पहुंच जाएंगे, तो ईश्वर भी आपका दास हो जाएगा।’ आप इस इन्टेलिजेंस तक पहुंच गए तो जिस चीज को भी जानने की कामना करेंगे, वह आपकी हो जाएगी।
आपको बस अपना ध्यान सही दिशा में केंद्रित करना होगा। हर इंसान किसी न किसी समय इत्तफाक से इस आयाम तक शायद पहुंच पाया हो यह क्षण अचानक उस इंसान की जिंदगी को एक जादुई अहसास से भर देता है। सवाल सिर्फ यह है कि सचेतन तरीके से वहां कैसे पहुंचा जाए? मन के ये आयाम पूरी तरह से मस्तिष्क में स्थित नहीं होते, ये पूरे सिस्टम में होते हैं। तो ये आठ तरह की स्मृतियां, बुद्धि के ये पांच आयाम और अहंकार यानी पहचान के दो आयाम व चित्त कुल मिलाकर मन के सोलह हिस्से होते हैं। चित्त चूंकि असीमित होता है, इसलिए यह सिर्फ एक ही होता है।
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