नारी
स्त्री को जीतने और सुधारने का एकमात्र अस्त्र उनके प्रति गहरी ममता, आत्मीयता, उदारता, करु णा, एवं हित कामना ही है।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
जिसके मन में यह भावना होंगी वह नारी की बुरी-से-बुरी आदतों को स्वल्प प्रयास से दूर करके उसके पूर्ण अनुकूल एवं उपयोगी बना सकेगा। इसके विपरीत जो उससे विरानेपन का, बदले का, अनुदारता का, स्वामित्व का एवं उसकी कमजोरों से नाजायज लाभ उठाने का प्रयत्न करते हैं, वे उसे कदापि नहीं सुधार सकते हैं वरन ऐसे प्रयत्नों से उलटा विद्वेष बढ़ाते हैं और अपने भविष्य को अंधकारमय बना लेते हैं। गृहस्थ जीवन की 90 प्रतिशत सफलता नारी की अनुकूलता पर निर्भर रहती है। और नारी की अनुकूलता पुरु ष की उदारता एवं सच्ची आत्मीयता पर निर्भर है। यदि नारी में कोई कमी भी है तो उसके निर्मल हृदय को प्रेम से जीता जा सकता है। हीरे के अंगूठी से यदि कोई अशुद्ध वस्तु लग जाए तो उसे कोई तोड़ नहीं डालता वरन उस अशुद्धि को हटाकर उस मूल्यवान वस्तु को पूर्ववत प्रेमपूर्वक रखा जाता है, इसी प्रकार नारी की छोटी-मोटी त्रुटियों, बुराइयों से निराश या विक्षुब्ध होने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि रोगी के प्रति डॉक्टर या परिचर्या करने वाले की जो भावना होती है उसी भावना के साथ उसे सुधारने की आवश्यकता है। गायत्री के ‘रे’ अक्षर में नारी के प्रति उदारता और सहृदयता का व्यवहार करने के लिए आदेश दिया गया है। इस आदेश को पालन करने से हमारे गृहस्थ जीवन में स्वर्गीय शांति, समृद्धि एवं उन्नति के अनेकों अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।
आज लड़की के पिता से दहेज मांगा जाता है। कम दहेज मिलने पर वधू का अपमान किया जाता है। कन्याओं की शिक्षा पर, उनके स्वास्थ पर मां-बाप पूरा ध्यान नहीं देते, ससुराल में लड़की को छोटी-छोटी बातों पर अपमानित होना पड़ता है, उसकी इच्छा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता, उसे स्वावलम्बी और उन्नतिशील बनाने के लिए भी किसी का ध्यान नहीं होता, केवल उससे अधिकाधिक सेवा लेने की ही सबकी दृष्टि रहती है। इस प्रकार की अनुदारता बंद करके और सहृदय व्यवहार करने का आदेश गायत्री मंत्र में दिया गया है। यदि हम इस आदेश को मानें तो निस्संदेह नारी अन्त:करण नर्मदा नदी के समान स्वच्छ, एवं शांतिमय बन सकता है और वह साक्षात लक्ष्मी बन कर हमारे जीवन को आनंद से परिपूर्ण कर सकती है।
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