मृत्यु
यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर जानने की इच्छा सभी को होती है. सभी अपने-अपने तरीके से इसका उत्तर भी देते हैं.
धर्माचार्य आचार्य रजनीश ओशो |
‘गरु ड़ पुराण’ भी इसी प्रश्न का उत्तर देता है. जहां धर्म शुद्ध और सत्य आचरण पर बल देता है, वहीं पाप-पुण्य, नैतिकता-अनैतिकता, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य और इनके शुभ-अशुभ फलों पर भी विचार करता है. वह इसे तीन अवस्थाओं में विभक्त कर देता है. पहली अवस्था में समस्त अच्छे-बुरे कर्मो का फल इसी जीवन में प्राप्त होता है.
दूसरी अवस्था में मृत्यु के उपरान्त मनुष्य विभिन्न चौरासी लाख योनियों में से किसी एक में अपने कर्मानुसार जन्म लेता है. तीसरी अवस्था में वह अपने कर्मो के अनुसार स्वर्ग या नरक में जाता है. हिंदू धर्मशास्त्रों में इन तीन प्रकार की अवस्थाओं का खुलकर विवेचन हुआ है.
जिस प्रकार चौरासी लाख योनियां हैं, उसी प्रकार चौरासी लाख नरक भी हैं, जिन्हें मनुष्य अपने कर्मफल के रूप में भोगता है. तुम पूछते हो-जीवन क्या है? तुम्हें जानना होगा. तुम्हें अपने भीतर चलना होगा. मैं कोई उत्तर दूं; वह मेरा उत्तर होगा. शांडिल्य कोई उत्तर दें, वह शांडिल्य का उत्तर होगा. उधारी से कहीं जीवन निकला है!
बजाय तुम बाहर उत्तर खोजो, तुम अपने को भीतर समेटो. शास्त्र कहते हैं, जैसे कछुवा अपने को समेट लेता है भीतर, ऐसे तुम अपने को भीतर समेटो. तुम्हारी आंख भीतर खुले, और तुम्हारे कान भीतर सुनें, और तुम्हारे नासापुट भीतर सूंघें, और तुम्हारी जीभ भीतर स्वाद ले, और तुम्हारे हाथ भीतर टटोलें, और तुम्हारी पांचों इंद्रियां अंतर्मुखी हो जाएं; जब तुम्हारी पाचों इंद्रियां भीतर की तरफ चलती हैं, केंद्र की तरफ चलती हैं, तो एक दिन वह अहोभाग्य का क्षण निश्चित आता है जब तुम रोशन हो जाते हो.
जब तुम्हारे भीतर रोशनी ही रोशनी होती है, वही जीवन का सार है. बुद्धिमान ही श्रद्धालु हो सकता है. बुद्धिहीन श्रद्धालु नहीं होता, सिर्फ विश्वासी होता है. और विश्वास और श्रद्धा में बड़ा भेद है.
विश्वास तो इस बात का संकेत है केवल कि इस आदमी को सोच-विचार की क्षमता नहीं है. विश्वास तो अज्ञान का प्रतीक है. जो मिला, सो मान लिया. जिसने जो कह दिया, मान लिया. न मानने के लिए, प्रश्न उठाने के लिए तो थोड़ी बुद्धि चाहिए, प्रखर बुद्धि चाहिए. बुद्धि सिर्फ तुमसे यह कह रही है-उठाओ प्रश्न, जिज्ञासाएं खड़ी, करो, सोचो. और जब सारे प्रश्नों के उत्तर आ जाएं, तब जो श्रद्धा का अविर्भाव होगा, वही सच है.
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