पीढ़ियों में टकराव
नई और पुरानी पीढ़ी के बीच आज ही नहीं, बल्कि हमेशा से विषमता रही है.
धर्माचार्य जग्गी वासुदेव |
इन दोनों के बीच असली समस्या है कि पुरानी पीढ़ी यह नहीं समझती कि उनकी उम्र ढल गई है और युवा पीढ़ी ये समझती है कि अब वे काफी बड़े हो गए हैं. उनकी उम्र इतनी हो गई है कि वे सब कुछ कर सकते हैं. दोनों के बीच सारी समस्या ही यही है. कोई और उस जगह पर कब्जा जमाए हुए है, जिसे आप हासिल करना चाहते हैं. ऐसा सिर्फ इंसानों में ही नहीं होता. खासकर, हाथियों में भी यह चीज देखने को मिलती है.
कभी अचानक आप देखेंगे कि एक जवान भरा-पूरा हाथी हर तरफ भाग रहा है, नाराज होकर वह हर चीज खींच रहा है, गिरा रहा है, क्योंकि उसकी लड़ाई अपने झुंड के किसी बड़े नर हाथी से हुई होती है. चूंकि वह बड़ा हाथी अपनी जगह नहीं छोड़ रहा होता, इसलिए यह युवा हाथी उससे लड़ने की कोशिश करता है. इसीलिए इस देश में वर्णाश्रम धर्म की कल्पना की गई.
इसमें जन्म से लेकर बारह साल तक बाल्यावस्था होता है. जहां सिर्फ खेलना होता है. बस शरीर व दिमाग का विकास होना चाहिए. बारह से चौबीस साल तक ब्रह्मचर्य रहता है. यह समय अनुशासन का है, जिसमें आपको खुद को अनुशासित करने की, अपने शरीर में, अपने दिमाग में अनुशासन लाने की जरूरत होती है. चौबीस साल की उम्र आने पर आप चयन करते हैं.
अगर आप जीवन को वैसे ही देखते हैं, जैसा यह है तो आपको फिर कुछ और करने की जरूरत नहीं है. आप अगर इसके आर-पार देख सकते हैं तो आप इसी उम्र में संन्यासी बन सकते हैं. वर्ना आपको एक गृहस्थ बनना होगा. तो अगर आप चौबीस साल की उम्र में शादी करते हैं, तो आपके दो सौर चक्र, यानी अगले चौबीस साल इसी में निकल जाएंगे और तब आप अड़तालीस साल के होंगे.
इसका मतलब हुआ कि आपके बच्चे इस उम्र तक अठारह से लेकर बीस-बाइस की उम्र के बीच कहीं होंगे. वे सब नौजवान बैल की तरह होंगे, जो चाहते होंगे कि आप चले जाएं, लेकिन कह नहीं पाते. लेकिन आज के आधुनिक दौर में हम बच्चों को दूर भेजते हैं, हम खुद बाहर नहीं जाते. हम उन्हें दूर कहीं और भेज देते हैं.
इन शरण-स्थलियों को हम यूनिर्वसटिी कहते हैं. सवाल आता है कि हम इससे निपटें कैसे? इस स्थिति से निपटने का तरीका है कि बुजुगरे यानी बड़ों को खुद को पीछे रखना सीखना होगा, जिससे नौजवान उस जगह को ले सकें.
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