सत्संग : पसंद-नापसंद से परे

Last Updated 06 Feb 2016 04:01:58 AM IST

आपके भीतर वह क्या है, जो बाधक हो सकता है?




जग्गी वासुदेव

सबसे बड़ी समस्या यह है कि आप अपने विचारों व भावनाओं को बहुत महत्त्व देते हैं, इनके अलावा, उन सभी चीजों से भी आपकी घोर आसक्ति है, जिनसे ‘मैं’ का बोध होता है या जिनसे आपका ‘मैं’ बनता है. आप उन्हें बहुत ज्यादा महत्त्व देते हैं, क्योंकि यही चीजें हैं, जो आपके व्यक्तिव को बनाती हैं. सबसे बुनियादी चीज है, आपकी पसंद और नापसंद. बाकी सब कुछ  इसी पर निर्भर करता है. आप किसके साथ रह सकते हैं, किसके साथ नहीं रह सकते हैं, किस तरह का खाना खा सकते हैं, किस तरह का नहीं, आप कहां जाते हैं और कहां नहीं, आप किस तरह के विचारों को अपनाते हैं और किस तरह के विचारों को ठुकराते हैं, ये सब और दूसरी कई चीजें भी मुख्य रूप से आपकी पसंद और नापसंद से निर्धारित होती हैं.

जब आपका जीवन इस प्रकार का हो, जिसमें आप एक चीज से प्यार करते हों और दूसरी चीज से नफरत, तो इसका मतलब है कि आप द्वैत की रचना कर रहे हैं. एक बार जब आप जीवन में द्वैतता को जगह दे देते हैं, तो वहां अध्यात्म के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता क्योंकि योग का मतलब एक होना होता है. अगर आप यह पसंद और नापसंद वाली बात अपने जीवन से हटा दें, तो आपकी आध्यात्मिक प्रक्रिया धीमी गति से नहीं होगी, यह आपके अंदर विस्फोट कर देगी. ऐसा करने के दो तरीके हैं.

पहला तरीका है कि संसार में मौजूद सभी चीजों को ऐसे देखा जाए कि वो बहुत पवित्र हैं. यहां तक कि आपका शौचालय जाना भी आपको एक पवित्र काम लगे. दूसरा तरीका है कि आप सभी चीजों को पूरी तरह से बेकार और निर्थक समझें. सभी चीजों को घोर नफरत और तिरस्कार की नजरों से देखें. आपके भगवान, आपका शरीर, आपकी आध्यात्मिकता, आपका ध्यान आदि किसी भी चीज के लिए आपके मन में कोई सम्मान न हो. दोनों तरीके बहुत अच्छे ढंग से काम करेंगे.

जब आप हर चीज को पवित्र समझते हैं तो आपके पास जीवन में करने के लिए बहुत काम हो जाते हैं. लेकिन हर चीज को बेकार मानना थोड़ा कठिन जरूर है. जो भी आपको अपने अनुकूल लगता हो, आप वही करें. या तो आप हर चीज को पवित्र मानें या फिर हर चीज को बेकार, जीवन में पसंद और नापसंद की बात न हो. यही चाभी है. अगर आप एक चीज को पवित्र और दूसरी को गंदा मानेंगे तो जहां तक आध्यात्मिक प्रक्रिया का सवाल है, यह बहुत धीमी होगी. आप एक अगरबत्ती की तरह धीरे-धीरे जलेंगे. और जब आप अपनी जिंदगी से पसंद और नापसंद हटा लेंगे तो आपकी आध्यात्मिक प्रक्रिया पटाखे की तरह जलेगी. पटाखा जिसे आग दिखाते ही चुटकियों में जल जाता है.



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