दिलवाड़ा के जैन मंदिर: पाषाण शिल्प और आध्यात्म का अप्रतिम केन्द्र

Last Updated 15 Dec 2015 04:41:54 PM IST

जैन धर्म जहां एक ओर अपनी सादगी के लिए समूची दुनिया में प्रसिद्ध है, वहीं दूसरी ओर इसके तीर्थस्थल अपने अप्रतिम सौंदर्य के लिए दुनियाभर में लोकप्रिय हैं.


दिलवाड़ा के जैन मंदिर: आध्यात्म का अप्रतिम केन्द्र

जैन धर्म की कई ऐसी धरोहर हैं जो तीर्थ पर्यटन की दृष्टि से बेहद रोचक हैं. इन्हीं में प्रमुखता से शुमार है दिलवाड़ा के जैन मंदिर. समुद्र तल से करीब साढ़े पांच हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित राजस्थान की मरुभूमि के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू जाने वाले पर्यटकों, विशेषकर स्थापत्य शिल्पकला में रुचि रखने वाले सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है दिलवाड़ा के जैन मंदिर समूह.

मंदिरों का समूह

दिलवाड़ा मंदिर वस्तुत: पांच मंदिरों का एक समूह है. इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था. जैन धर्म के तीर्थकरों को समर्पित इन शानदार मंदिरों में सर्वाधिक प्राचीन व प्रमुख है ‘विमल वासाही मंदिर’. प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ को समर्पित यह मंदिर 1031 ई. में बना था. 22वें तीर्थकर नेमीनाथ को समर्पित यहां का ‘लुन वासाही मंदिर’ भी काफी लोकप्रिय है. यह मंदिर 1231 ई. में वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाइयों द्वारा बनवाया गया था.

अद्वितीय स्थापत्य की मिसाल सफेद संगमरमर से निर्मित दिलवाड़ा के इन मंदिरों का स्थापत्य अद्वितीय है. विमल वसाही मंदिर की मुख्य विशेषता इसकी छत है जो 11 समृद्ध पच्चीकारी वाले संकेन्द्रित वलयों में बनी है जो एक सुंदर सजावटी केंद्रीय पेंडेंट के रूप में दिखाई देती है. मंदिर के गुंबद का पेंडेंट नीचे की ओर संकरा होता हुआ एक बिंदु के रूप में कमल के फूल की तरह दिखाई देता है. मानो दैवीय भव्यता को मानवीय आकांक्षाओं के रूप में सृजित किया गया हो.

मंदिर की छत पर 16 विद्याओं की देवियों (ज्ञान की देवियों) की दर्शनीय मूर्तियां अंकित हैं. यहां की पच्चीकारी इतनी जीवंत है कि सहज ही देखने वाले का मन मोह लेती हैं. अपने ऐतिहासिक महत्व और संगमरमर के पत्थर पर बारीक नक्काशी की जादूगरी के लिए इन विविख्यात मंदिरों के शिल्प-सौंदर्य का समूची दुनिया में कोई सानी नहीं है. पत्थर के निर्जीव खण्ड को इस कुशलता से तराशा गया है कि हर आकृति सजीव लगती है. 

शिल्प भी है भिन्न

इन मंदिरों की भव्यता उनके वास्तुकारों की भवन-निर्माण में निपुणता, उनकी सूक्ष्म पैठ और छेनी पर उनके असाधारण अधिकार का परिचय देती है. इन मंदिर की प्रमुख विशेषता यह है की सभी की छतों, द्वारों, तोरण, सभा-मंडपों का उत्कृष्ट शिल्प एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न है. 

पांच मंदिरों के इस समूह में दो विशाल मंदिर हैं और तीन उनके अनुपूरक. मंदिरों के प्रकोष्ठों की छतों के गुंबद व स्थान-स्थान पर उकेरी गयीं सरस्वती, अम्बिका, लक्ष्मी, सव्रेरी, पद्मावती, शीतला आदि देवियों की दर्शनीय प्रतिमाएं इनके शिल्पकारों की छेनी की निपुणता के साक्ष्य खुद-ब-खुद प्रस्तुत कर देती हैं. यहां उत्कीर्ण मूर्तियों और कलाकृतियों में शायद ही कोई ऐसा अंश हो जहां कलात्मक पूर्णता के दर्शन न होते हों. शिलालेखों और ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार प्राचीन काल में यह स्थल अबू नागा जनजाति का प्रमुख केंद्र था.

महाभारत में अबू पर्वत में महर्षि वशिष्ठ के आगमन का उल्लेख मिलता है. इसी तरह जैन शिलालेखों के अनुसार जैन धर्म के संस्थापक भगवान महावीर ने भी यहां के निवासियों को उपदेश दिया था.

इच्छा पूर्ण होने पर बनवाया मंदिर

यहां के जैन मंदिरों में सबसे बड़े मंदिर विमल वासाही मंदिर का निर्माण गुजरात के चालुक्य वंश के राजा भीमदेव के सेनापति विमल शाह ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा पूरी होने पर करवाया था. इस मंदिर में तीर्थकरों के साथ कई हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं. मंदिर का सबसे उत्कृष्ट कला का भाग इसका कलामंडप है जिसके बारह अलंकृत स्तम्भों और तोरणों पर टिका एक विशाल गोल गुम्बज है जिसमें हाथी, घोड़े, हंस, वाद्ययंत्रों सहित नर्तकों आदि की आकर्षक प्रतिमाएं उकेरी गयी हैं. इस मंदिर समूह के दूसरे प्रमुख मंदिर ‘लुन वासाही मंदिर’ का निर्माण वास्तुपाल और गुजरात के सोलंकी राजा भीमदेव के मंत्री व उनके भाई तेजपाल ने करवाया था.

हो चुका जीर्णोद्धार

इसके अलावा मंदिर परिक्षेत्र में पीतल हर अर्देर मंदिर, खारतशाही पार्श्वनाथ मंदिर और भगवान महावीर स्वामी मंदिर स्थित हैं. इसमें महावीर स्वामी मंदिर सबसे छोटा और सादगीपूर्ण है. इसी प्रकार पीतल हर मंदिर का निर्माण गुजरात के भीमशाह ने करवाया था. बाद में सुंदर और गदा नामक व्यक्तियों ने इसका जीर्णोद्धार करवाया व इसमें ऋषभदेव की पंचधातु की मूर्ति स्थापित करवायी जिसका वजन एक मन माना जाता है.

इसके अलावा यहां एक चौमुखी मंदिर भी दर्शनीय है. इसे खारतवासी मंदिर भी कहा जाता है. इसमें भगवान पाश्र्वनाथ की सुंदर मूर्ति विराजमान है. भूरे पत्थर से बना यह तीन मंजिला मंदिर अपने शिखर सहित दिलवाड़ा समूह सभी मंदिर में सबसे ऊंचा है. समूह के पांचवें खेताम्बर मंदिर के साथ भगवान कुथुनाथ ने यहां काले पत्थर का एक ऊंचा स्तंभ बनाया था. संक्षेप में कहें तो विस्मयकारी सुकोमल, सुंदर पाषाण वास्तुशिल्प से अलंकृत दिलवाड़ा के जैन मंदिर भारतीय शिल्पकला का मानव जाति को एक अनूठा उपहार माना जा सकता है.    

(पूनम नेगी)



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