स्वर्ग-नरक की स्वसंचालित प्रक्रिया

Last Updated 04 Jun 2015 01:01:44 AM IST

मान्यता यही है कि मरने के बाद स्वर्ग प्राप्त होता है, क्योंकि अमुक ने अच्छे काम किए, यह जन्म पुण्य परमार्थ भरा जिया.




पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

दुष्ट व्यक्ति को बार-बार यही प्रताड़ना दी जाती है कि मरने के बाद उसे नरक मिलेगा, इसलिए उसे अपना जीवन सुधारना चाहिए. स्वर्ग और नरक कहां हैं?

क्या वस्तुत: मरणोत्तर जीवन में आत्मा ऐसे किसी लोक, नगर, ग्राम, या देश में परिभ्रमण करती है? ये सारी जिज्ञासाएं सहज ही मन में उठती हैं. विज्ञान के प्रगतिशील युग में सौरमंडल के ग्रह-उपग्रहों को खोज लिया गया है. लेकिन अब तक ऐसे किसी लोक के अस्तित्व की सम्भावना नहीं दिखती.

तबक्या स्वर्ग-नरक, मात्र कल्पना भर हैं? कर्मों के फल प्राप्त करने के लिए कोई माध्यम नहीं है क्या? जिन कर्मों का फल इस जन्म में नहीं मिल सका उनके लिए ईश्वर के दरबार में कोई व्यवस्था नहीं है क्या?

सद्गति और दुर्गति का कोई माध्यम न हो तो फिर शुभ कर्म और अशुभ कर्म करने वालों को तदनुरूप प्रतिफल कैसे मिलेगा? ऐसे अनेक प्रश्न उभर कर आते हैं और यह असमंजस उत्पन्न करते हैं कि यदि स्वर्ग-नरक का अस्तित्व था ही नहीं तो धर्म-संस्थापकों ने इतना बड़ा कलेवर रचकर खड़ा क्यों कर दिया?

हमें जानना चाहिए कि स्वर्ग-नरक दोनों का अस्तित्व है और उनके माध्यम से शुभ-अशुभ कर्मों के फल मिलने की समुचित व्यवस्था मौजूद है. अंतर केवल स्थान विशेष का है. संदेहास्पद बात केवल इतनी भर है कि उनके लिए कहीं कोई नियत ग्राम या स्थान है या नहीं.

यह लोक हमारा भावनात्मक दृष्टिकोण है. इन दोनों ही लोकों में कर्मफल मिलने की समुचित व्यवस्था मौजूद है. उसका निर्माण स्वसंचालित प्रक्रिया के आधार पर हुआ है. किसी बाहरी शक्ति के हस्तक्षेप की उसमें आवश्यकता नहीं है.

यही व्यावहारिक भी था और तर्क संगत भी. एक छोटे से मुकदमे का फैसला कराने में कितने वकील, गवाह, जज, पुलिस आदि कार्यकर्ता लगते हैं. मनुष्य जीवन में क्षण-क्षण पर भले-बुरे कर्म बनते हैं. एक दिन में ही उनके दंड-पुरस्कार की सैकड़ों फाइलें बन सकती हैं.

जीवन भर में तो वे असंख्यों हो जाएंगी. फिर अरबों मनुष्य धरती पर मौजूद हैं. उन सबका लेखा-जोखा रखना और दंड-पुरस्कार का विधान बनाना इतना बड़ा हो जाएगा कि उसके लिए मनुष्य लोक से अधिक कर्मचारी लग जाएंगे. अस्तु, अन्य सत्ता के माध्यम से दंड-पुरस्कार की व्यवस्था होना एक प्रकार से कठिन ही नहीं, असंभव भी है.

गायत्रीतीर्थ शान्तिकुंज, हरिद्वार



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